स्वास्थ्य आपकी मुट्ठी में

                मुम्बई में मलबार हिल के इलाके में एक बहुत बड़े उद्योगपति अपनी कीमती कार में जा रहे थे। एक स्थान पर उनके ड्राइवर ने उनसे निवेदन किया कि साहब आप छुट्टी दें तो मुझे नजदीक में आवश्यक कार्य है जिसे करके मैं आऊं । उन्होंने कहा, ठीक है, जल्दी पूरा करके आ जाना। तो ड्राइवर ने कहा, साहब, यूं गया, यूं आया। जब ड्राइवर वापस आया तो उस उद्योगपति से रहा नहीं गया और उन्होंने अपने मन का प्रश्न पूछ ही लिया “भैया” यहाँ पर आपको कौन सा जरूरी कार्य था? ड्रॉयवर का उत्तर सुनकर वह सोचने लगा कि यह मामूली आदमी है फिर भी मुझसे अधिक सुखी है। थोड़ा विचार कीजिए कि ड्राइवर कौन से कार्य के लिए गया होगा।  ड्राइवर का जबाब था, साहब, यहाँ पर प्रसिद्ध हलवाई की दुकान है, जब-जब मैं यहाँ से गुजरता हूँ तब-तब मुझे एक प्लेट मिठाई खाने की इच्छा होती है। इस बार भी मैं अपनी इच्छा को रोक नहीं सका। इसलिए आपसे छुट्टी लेकर मिठाई खाकर आया। यह सुनकर उस प्रसिद्ध उद्योगपति ने सोचा, मेरे पास इतना धन है कि ऐसी सौ हलवाई की दुकान खरीदना आसान है पर मैं एक प्लेट मिठाई नहीं खा सकता हूं। क्योंकि मुझे डॉयबिटीज है। यह ड्राइवर तो मुझसे अधिक सुखी है, देखो कितने आराम से मिठाई खाता है।  

                भगवान को एक बार पूछा गया कि मनुष्य के बारे में आपको सबसे आश्चर्यजनक बात कौन सी लगती है? तो भगवान ने एक क्षण का विलम्ब किये बिना उत्तर दिया कि मनुष्य अपने जीवन के 35-40 वर्ष की आयु तक धन कमाने के पीछे भागता है, जिससे स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है। और 40 वर्ष के बाद स्वास्थ्य को अच्छा करने के लिए भटकता है जिसमें अपना कमाया हुआ धन खर्च कर देता है। जैसे- कोल्हू का बैल। जो पूरा दिन चक्कर लगाता रहता है। किसी ने पूछा कि दिन भर में कितना चला, तो कहा कि 5000 किमी.। लेकिन देखा जाय तो जहाँ थे वहीं के वहीं हैं। कुदरत ने हमें स्वस्थ्य जीवन के लिए आवश्यकता से 4 से 5 गुना अधिक शक्ति प्रदान की है। हम अपनी गलत जीवन पद्धति से अपनी स्वास्थ्य सम्मत्ति को नष्ट करते रहते हैं।

-शिविर का उद्देश्य-

                स्वास्थ्य के प्रति जागृति लाना। जब शरीर व मन दोनों से व्यक्ति सक्षम रहेगा, तो जीवन में सहज सफलता प्राप्त कर सकता है। परन्तु आजकल इस तनावयुक्त युग में हर व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रीति से कमजोर हो गया है। वह तरह-तरह की औषधियों से ठीक होने की कोशिश करता है, फिर भी बीमारियों का स्वरूप बढ़ता ही जा रहा है। यदि बीमारी आई और उसके बाद स्वास्थ्य के प्रति जागृति आई तो ज्यादा स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकते हैं। फिर कितनी भी कोशिश करने पर 20 प्रतिशत से ज्यादा फायदा नहीं होगा। यदि हम पहले से ही जागृत रहते हैं तो 80 प्रतिशत फायदा हो सकता है। यह प्रोग्राम इसलिए तैयार किया गया है जिसमें शारीरिक फायदे भी हैं तथा साथ-साथ मानसिक-समाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से भी शक्ति प्रदान करता है।

                आजकल लोग बहुत हेल्थ कॉन्शिअस हो रहे हैं। इसके लिए योग-व्यायाम की तरफ ज्यादा आकार्षित हो रहे हैं। इसलिए व्यायाम के साथ-साथ मेडीटेशन का प्रयोग करके नवीनता लाने का प्रयास इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के अन्तर्गत किया गया है जिससे ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विद्यालय के उद्देश्य को स्पष्ट कर सकें। हमारा उद्देश्य है बाबा के ज्ञान को इस प्रोग्राम के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना। इसके साथ-साथ मन-वचन व कर्मों के द्वारा सेवा भी होनी चाहिए जिससे न केवल तन की शक्ति बढ़नी चाहिए बल्कि मनोबल भी बढ़ाना है। अपनी रूहानियत से कुछ अलौकिक दिव्यता की अनुभूति हो, अपनी दृष्टि से, संकल्प से शक्ति भरनी चाहिए जिससे हर आत्मा बाबा के समीप आ जाये। इसके लिए बीच-बीच में रोचक बातें बताकर उमंग-उत्साह बढ़ाना चाहिए जिससे उनकी शिविर में रूचि बनी रहे।

इस प्रकार दीप से दीप जगाते रहना है। जो ज्ञान हमने लिया है वह पूरा-पूरा विधिपूर्वक बांटना है।

विधिपूर्वक करने पर सफलता निश्चित ही समाई हुई है। हमेशा यही सोचो कि बाबा का प्रत्येक कार्य सम्भव है। यदि रूकावटें आती भी हैं तो निराश न हों, कोशिश करने पर सफलता मिलनी ही है।

इस कार्यक्रम के 7 कदम हैं- जो स्लोगन के रूप में तैयार किये हैं।

1. ज्ञान में ही शक्ति है।

2. स्वस्थ जीवन का सबसे सरल, सबसे सस्ता और सर्वोत्तम उपाय है नियमित व्यायाम।

3. आहार ही औषधि है।

4. मनुष्य का सबसे पहला दुश्मन है “मानसिक तनाव”

5. मन जो बीमार करता है, वही मन स्वस्थ भी कर सकता है।

6. कम से कम आवश्यकता अनुसार ही दवा लेनी चाहिए।

7. व्यसनमुक्ति के बिना स्वस्थ जीवन की आशा रखना स्वप्न के समान है।

1. ज्ञान में ही शक्ति है- सबसे बड़ा रूपैया, सच या झूठ? (पुनः उनसे ही पूछो )। आपकी दुनिया में सच, परन्तु स्वास्थ्य की दुनिया में झूठ है। आज अनेक धनवान व्यक्ति हैं परन्तु कोई स्वस्थ नहीं है। कुछ साल पहले प्रेरणा मिली की मुझे डॉयबिटीज के बारे में लिखना है। मैनें 50 से अधिक किताबें पढ़ी, जिसको पढ़ते-पढ़ते यह पढ़ा कि “पेट बन जाय मटका तो स्वास्थ्य को लगता झटका” तो स्वयं पर ध्यान देना शुरू किया और अपना वजन 85 से घटा करके 75 किलो तक कर दिया।

                स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद ही पता पड़ता है कि स्वास्थ्य क्या है और क्यों स्वस्थ रहना जरूरी है। लेकिन यदि ज्ञान पहले से ही है तो स्वास्थ्य को ठीक रखा जा सकता है। परन्तु उसमें मूंझना (कंफ्यूज) नहीं होना है। जैसे- कई कहते है कि अंकुरित चीज नहीं खानी चाहिए क्योंकि उसमें जहरीले तत्व होते हैं। और कई कहते हैं कि प्रतिदिन 100 ग्राम अंकुरित चीजें खानी चाहिए। वास्तव में अंकुरित चीजों में एक तत्व है “ट्रिप्सिन, इनहिबिटर” है जो पाचन क्रिया को धीमा कर देता है। जिससे पेट में भारीपन आ जाता है। दूसरा तत्व है- “आयरन चिलेटिन एजेण्ट” जो आयरन से चिपक जाता है जिससे आयरन खून में नहीं जाने से हिमोग्लोबिन बढ़ेगा नहीं। परन्तु अंकुरित चीजों में 98 अच्छे तत्व भी हैं। इसलिए अंकुरित चीजों को दो मिनट हल्का सा उबाल करके या फ्राई करके खाओ तो दोनों खराब तत्व खत्म हो जायेंगे। कई कहते हैं कि उबालने पर बिटामिन सी खत्म हो जाता है। तो विटामिन सी को हम और कहीं से प्राप्त कर सकते हैं।

2स्वस्थ जीवन का सबसे सरलसबसे सस्ता और सर्वोत्तम उपाय है नियमित व्यायाम

स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखने के लिए व्यायाम की जरूरत है। कुछ भी नहीं सीखो परन्तु 45 मिनट टहलना  चाहिए। व्यायाम करने से शरीर में कई तरह से परिवर्तन आते हैं जो स्वास्थ्य में वृद्धि करने वाले हैं। व्यायाम से क्या-क्या फायदा होता है।

1. रक्त संचार बढ़ता है।

2. श्वास लेने की क्षमता बढ़ती है।

3. जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं।

4. चर्बी कम होती है।

5. शरीर का वजन कम होता है।

6. शरीर में लचीलापन आता है।

7. पाचन क्रिया बढ़ती है

8. भूख बढ़ती है।

9. शक्ति बढ़ती है।

10. हड्डियां मजबूत होती हैं।

11. कैल्शियम हड्डियों में जाता है अन्यथा रक्त में रहता है।

12. ह्दय की क्षमता बढ़ती है।

13. मस्तिष्क में रक्त संचार बढ़ता है।

14. अग्न्याशय को आराम मिलता है।

15. अंतः स्राव में संतुलन आता है।

16. रक्त की नयी नलिकायें निर्मित होती है।

17. हमारे ब्रेन में endorphin एवं encphalin तत्व होते हैं। endorphin दर्दनाशक हैं। जो हमारे शरीर में होता है। endorphin 50 गुना ज्यादा morphin से पावरफुल है। व्यायाम से endorphin का स्राव बढ़ता है।

18. DHEA (Dihydro Epi Androsteron) व्यायाम से अच्छी मात्रा में रिलीज होता है। जो हार्मोन्स शक्ति निर्माण करता है जिससे बुढ़ापा देर से आता है।

19. हमारे शरीर में दो प्रकार की चर्बा होती है। 1. अच्छी चर्बा 2. खराब चर्बा

1. HDL High Density Lipoprotein

2. LDL Low Density Lipoprotein

जो रक्त भ्रमण नहीं करके धमनी में चिपक जाती है। व्यायाम HDL बढ़ता है, LDL कम होता है। ज्यादा रक्तचाप होने पर कम होता है, यदि कम रक्तचाप हो तो बढ़ता है। ऐसे व्यायाम से संतुलन आता है। स्वस्थ जीवन के लिए व्यायाम का कोई पर्याय नहीं है।

1. “व्यायाम ध्यान Moving Meditation

मूविंग मेडीटेसन क्यां जरूरी है? बीमारी से बचने के लिए तथा राहत के लिए जरूरी है। स्वास्थ्य भी सबसे बड़ी संपत्ति है जो सदा कायम रहे। जैसे पैसे को बैंक में फिक्स डिपॉजिट करते हैं वैस स्वास्थ्य हमारी मुट्ठी में रहे, जिसे किसी और के सहारे नहीं छोड़ना है।

                नेपोलियन बोनापार्ट एक साथ पाँच कार्य करते थे, तो हम कम से कम दो कार्य एक साथ नहीं कर सकते है क्या? जैसे- भारत में योगासन मशहूर है। वैसे चीन में ताईची मशहूर है। ताईची धीरे से करने का व्यायाम है। Taoism जो बुद्धिष्ट फिलोसोफी है। ‘ची’ का अर्थ वैश्विक ऊर्जा (Universal Energy) ताईची व्यायाम का लक्ष्य है ऊर्जा का भ्रमण। यदि यह उर्जा शरीर में कहीं रूक जाय तो व्यक्ति बीमार पड़ता है। यही सिद्धान्त सभी मेडिसिन की प्रणाली में पाया जाता है।

एक्यूप्रेशर में मेरेडियन का सिद्धान्त, होमियोपैथ में वायटल फोर्स कहते हैं।

एलोपैथी में (allopathy )  human energy field कहते हैं। इस energy field के विषय में अलग-अलग रिसर्चेस हुए हैं।

Krelian Photography (क्रिलियन फोटोग्राफी) सूक्ष्म एनर्जा फील्ड का फोटोग्राफ लेती है। PIP – Poly contrast Interference Photography  – जिसमें सूक्ष्म आभा मंडल Energy Field को Interpretate किया जाता है जिसमें काला, लाल जैसे गहरे रंग बुरे संकेत है। अव्यक्त ऊर्जा में खराबी है और Light Color +ve संकेत है अर्थात् अव्यक्त ऊर्जा स्वस्थ है।

उदाहरण- दिल्ली में सर गंगाराम हॉस्पिटल के स्टाफ पर रिसर्च हुआ जिसमें दो चिटकी बनाई गई M-Meditation Group, C-Control. Control Group में सिर्फ हल्का म्युजिक बजाया गया और मेडिटेशन

ग्रुप में म्युजिक के साथ-साथ राजयोग का अभ्यास कराया गया। जिन्हें म्युजिक सुनाया गया उनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। जिनको राजयोग सिखाया गया उनमें औरा हल्के रंग का होने लगा।

                इस ऊर्जा को हम अव्यक्त ऊर्जा कहेंगे। इस ऊर्जा को हमें पूरे शरीर में भ्रमण कराना है और बढ़ाना है। उदाहरण- दो हाथों के मध्य में इस ऊर्जा को अनुभव करो। व्यायाम के दौरान जागृति को बनाये रखना है। पुनः पूछना है कि अनुभव हो रहा है कि नहीं? यदि जिनको अनुभव नहीं हुआ उनको बुलाइए। जिनको अनुभव हुआ उनको भी बुलाइए। जिनको अनुभव हुआ है उनके दोनों हाथों के मध्य में पहले व्यक्ति का हाथ रखिए। अब कंपन अनुभव होने की संम्भावना बढ़ जायेगी। जिन्हें कुछ अनुभव नहीं हुआ उनको कहिए कि आपको अनुभव नहीं हुआ तो आपको ज्यादा जरूरत है। आपकी अव्यक्त ऊर्जा कम है, उसे बढ़ाना है।

अव्यक्त ऊर्जा अनुभव क्यों नहीं हुई?   

1. क्यांकि अव्यक्त ऊर्जा कम है 2. आज भागदौड़ की लाईफ में मनुष्य बाह्यमुखता में ज्यादा है। जो सूक्ष्म चीजों पर ध्यान नहीं देता है।

                इस अव्यक्त ऊर्जा को बढ़ाने के लिए हमें क्या अभ्यास करना चाहिए? 1. वर्तमान में जिओ। जैसे जब हम स्नान करते हैं तो हम बॉस के बारे में सोचते हैं और बॉस के साथ बात कर रहे होते है तब सोचते हैं कि आज हमने बराबर स्नान नहीं किया।

उदाहरण- एक बार क्लास में अध्यापक ने बच्चों से पूछा कि सत्य व भ्रम में क्या फर्क है तो एक विद्यार्था ने कहा कि आप जो हमें पढ़ा रहे हैं वह सत्य है। परन्तु आप का यह समझना कि हम पढ़ रहे हैं, वह आपका भ्रम है। ऐसे हम कोई भी कार्य ध्यान से नहीं करते हैं।

Past – History

Future – Mistry

Present – Gift given by God

Past – Experience

Future – Expectation

Present – Experiment

यदि हम पास्ट के एक्सपीरियंस को प्रेजेंट के एक्सपेरिमेंट में उसे करते हैं तो फ्यूचर के एक्सपेक्टेशन को सत्य सिद्ध कर सकते हैं | वर्तमान में जीना एक जादू का काम है जिसने सीख लिया वह पूरा-पूरा आनंद लेगा।

                वर्तमान में जीवन जीने के लिए होम वर्क- अपनी अव्यक्त ऊर्जा को अनुभव करो। दिन में 100 बार स्वयं से प्रश्न करो कि मैं कहाँ हूं? क्या कर रहा हूँ? “इमरसन” से किसी ने पूछा कि आप की उम्र क्या है, तो उन्होंने कहा, कौन सी? शारीरिक उम्र 60 वर्ष और मानसिक उम्र 120 वर्ष है। हर घड़ी का उसने दोगुना आनंद लिया है।

                वर्तमान में जीने के लिए प्रातः सूर्योदय से पहले उठने की आदत डालनी है। घर की खिड़की से बाहर देखो। अपने आप से बात करो कि आज का सबेरा कितना अच्छा है। हर पल का आनंद लेना है तो हमें बच्चों से सीखना चाहिए। बच्चे को कोई एक फूल भी दे दो तो वे खुश हो जाते हैं। और हम सोचते हैं कि एक फूल ही तो है। हमें तो पूरा गुलदस्ता मिलना चाहिए। मन हमारा भागेगा परन्तु जो कर्म हम कर रहे हैं उसमें लगाना है। जैसे रूचि नहीं होती है तो आधा घंटा भी पांच घंटे के बराबर लगेगा। जैसे बीमारी के बाद स्वास्थ्य का महत्व पता चलता है। ऐसे समस्या के बाद आध्यात्मिकता के महत्च का पता चलता है।

आज किसी को ध्यान करने के लिए कहो तो उत्तर मिलेगा कि समय नहीं है। आज मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है वह प्रसिद्धि के लिए कर रहा है। जरा सोचिए, साथ क्या जायेगा?

                उदाहरण- एक राजा था जिसकी चार रानियाँ थी। पहली रानी को राजा हमेशा अपने संग रखता था। दूसरी रानी बहुत सुन्दर थी। जब भी राजा को दूसरे राज्य में जाना होता था तब वह दूसरी रानी को अपने साथ ले जाता था। तीसरी रानी बुद्धिमान थी। जब राजा को कुछ समस्या का समाधान करना होता था तब वह तीसरी रानी को बुलाता था। चौथी रानी दिन भर घर का कारोबार करती थी परन्तु राजा उसको कभी भी नहीं बुलाता था। जब राजा का बुढ़ापा आया और मृत्यु का समय नजदीक आया, तब राजा ने पहली रानी से पूछा कि क्या वह साथ चलेगी? तो रानी ने तुरन्त इन्कार कर दिया। तब राजा ने दूसरी रानी से पूछा, क्या वह साथ चलने को तैयार है? तो उसने कहा कि स्वप्न में भी नहीं जाउंगी। लेकिन आपके मरने के बाद, मैंने पूरी तैयारी कर ली है कि दूसरी शादी करूंगी। तीसरी रानी ने कहा कि थोड़ी दूर तक साथ दूंगी। अब राजा ने चौथी रानी से पूछा कि मैंने तो आपको कभी साथ नहीं रखा लेकिन फिर भी क्या आप साथ चलोगी? तो चौथी ने कहा, हाँ, मैं साथ चलूंगी मैंने पहले से ही निर्णय कर लिया है कि जब तक आप जिन्दा हैं तब तक राज्य का कारोबार चलाना है और आप की मृत्यु के उपरान्त आपके साथ चलना है। तो कोई और राजा-रानी की नहीं बल्कि यह हम सब की ही कहानी है।

                पहली रानी अर्थात् शरीर, मृत्यु के तुरन्त बाद साथ छोड़ देता है। दूसरी रानी अर्थात् धन-सम्पत्ति, जो दूसरे की होनी है। तीसरी रानी अर्थात् मित्र-सम्बन्धी जो शमशान तक साथ देते हैं। चौथी रानी अर्थात् संस्कार जो प्रत्येक मनुष्य अपने साथ लेकर चलता है। एक ही मां-बाप के बच्चों में अन्तर संस्कार से ही होता है। तो अब हमें किसके लिए समय देना है? शरीर, धन, मित्र-सम्बन्धी नहीं बल्कि जो आत्मा के साथ जाने वाला है उस अच्छे संस्कार के लिए समय देना है।

-सबसे बड़ा सहारा है आध्यात्मिक सहारा-

                हम सभी का सबसे बड़ा सहारा है परमात्मा, जब सहारा छूटे तब परमात्मा को याद करें ऐसा नहीं।  कहते हैं कि सुख में सुनार (स्वर्ण आभूषण के लिए) याद आता है और दुःख में भगवान याद आता है। यदि परमात्मा का साथ है तो अन्य सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उदाहरण- एक राजा था जो निःसंतान था। एक बार उसके राज्य में एक तांत्रिक आया और उसने राजा से कहा कि एक बच्चे की बलि देने से पुत्र की प्राप्ति होगी। पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा के मन में विचार आया कि किसी गरीब को बहुत धन देंगे तो वह धन के लालच में अपने पुत्र को बलि देने के लिए तैयार हो जायेगा। इसके लिए राजा ने पूरे राज्य में ढिंढ़ोरा पिटवाया। तो एक गरीब जिसके बच्चे भूखे थे, उसने अपने बीच के बच्चे को बलि देने के लिए राजा को सौंप दिया। परन्तु बच्चे को नहीं बताया कि उसको किस लिए राजा के पास सौंप रहे हैं। बच्चा थोड़े दिन आराम से रहा। एक दिन दासी ने बच्चे को बता दिया कि राजा तुमको बलि देने वाला है इसलिए तुमको यहाँ लाया गया है। तब वह सोच रहा था कि ऐसा क्यों? बच्चा एक दिन खेलते हुए मिट्टी का घर बना रहा था, एक घर बनाया उसको तोड़ दिया, पुनः दूसरा बनाया उसको तोड़ दिया, उसके बाद तीसरा बनाया उसको ध्यानपूर्वक देखते-देखते रोने लगा। लेकिन उस घर को नहीं तोड़ा। राजा उस बच्चे के इस कार्य को बहुत ध्यानपूर्वक देख रहा था। तो राजा ने बच्चे से पूछा कि बेटे तुमने ऐसे क्यों किया? तो बच्चे ने कहा कि मैं जानता हूं कि मेरे माँ-बाप ने मुझको बलि चढ़ाने के लिए भेजा है जिसके लिए मैं तैयार हूं। राजा ने पूछा कि पहले तुम यह बताओ कि तुमने ऐसा क्यों किया। बच्चे ने बताया कि मैंने पहला घर बनाया माता-पिता के लिए, उनको देखने लगा तो विचार आया कि मेरे माँ-बाप अच्छे नहीं हैं। उन्होंने तो मुझे यहाँ बलि चढ़ाने के लिए भेज दिया। दूसरा घर आपके लिए बनाया, जब उसको देखने लगा तो विचार आया कि राजा तो प्रजा की पालना करता है, परन्तु यह राजा अच्छा नहीं है जो अपने स्वार्थ के लिए मेरी बलि देने को तैयार है। तो राजा ने पूछा कि जो तीसरा घर बनाया वह किसके लिए तो बच्चे ने कहा भगवान के लिए बनाया। उसको देखता रहा कि मेरा बलिदान देंगे तो मैं भगवान के पास जाउंगा। इसलिए भगवान ही मेरा रक्षक है। इसलिए तीसरे घर को मैंने नहीं तोड़ा। राजा ने जब बच्चे के मुख से यह बात सुनी तो सत्य लगी कि राजा तो प्रजा का पालनहार होता है। बच्चा समझदार है। तो राजा ने उस बच्चे को राजकुमार बना दिया। तो इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि भगवान ही हम सबका रक्षक है। अन्त में परमात्मा की तरफ मुड़ने के बजाय, शुरू में ही परमात्मा को अपना सहारा बना लें तो समस्या होगी ही नहीं।

प्रत्येक परिस्थिति को साक्षी भाव से देखो-

                उदाहरण- एक व्यक्ति दो दिन अलग-अलग डॉक्टर के पास गया। पहले दिन जब वह पहले डॉक्टर के पास गया तो उसने देखा कि डॉक्टर के पास क्लिनिक में फर्नाचर सड़ा हुआ है। पौधे मुरझा गये हैं, सूख गये हैं। दीवारों का रंग निकल गया है। यह सब देखकर उस व्यक्ति ने सोचा कि जो डॉक्टर अपने पौधों की देखभाल नहीं कर सकता वह मेरा इलाज क्या करेगा, मुझे तो मार ही डालेगा।

                दूसरे दिन वह दूसरे डॉक्टर के पास गया तो उसने देखा कि डॉक्टर की क्लिनिक में बहुत बढ़िया फर्नाचर है। बहुत ही महंगा कमरा है, सब चीजें व्यवस्थित ढंग से रखी हुई हैं। यह देखकर उस व्यक्ति ने सोचा कि यह डॉक्टर बहुत ज्यादा पैसे लेगा। इसके बदले यदि वहां पर कैमरा रखो तो वह केवल फोटो लेगा, परन्तु सोचेगा नहीं। जब भी सम्भव हो हमारी आंखे कैमरे का काम करे। अर्थात् जो जैसा है, वैसा ही देखो, सोचो नहीं। अपने दर्द को भी साक्षी भाव से देखो। यदि ईर्ष्या हो रही है, क्रोध आ रहा है तो उसे साक्षी भाव से देखो कि मुझे क्रोध आ रहा है फिर वो धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा।

मूविंग मेडीटेशन के द्वारा हमें 8 फायदे हैं।

1. सारे शरीर को व्यायाम मिलता है।

2. क्रियाओं के अनुरूप सकारात्मक विचार को जोड़ा गया है।

3. वर्तमान में जीते हो।

4. अव्यक्त ऊर्जा भ्रमण करती है।

5. अव्यक्त ऊर्जा बढ़ती है।

6. नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है जिससे आने वाली बीमारियों से बच सकते हैं।

7. ध्यान लगता है।

8. मनोरंजन भी मिलता है।

1. दोनों हाथो को फैलाकर महसूस करें … ऊर्जा भर रहे हैं। पुनः दोनों हाथों को नजदीक लाते जायें और महसूस करें कि वो ऊर्जा अपने अन्दर समा रही है।

                सूचना- जब गीत बजे तब अपने दोनों पैर को हिलाना है और गीत के शब्दों में खो जाना है। जब बैलून (गुब्बारा) बनाओ तब एक पैर उंचा करना है। जल्दी बाजी नहीं करनी है। हाथों को वी सेप (V) नहीं बनाना है। कंधों को ज्यादा ऊपर नहीं करना है। अर्धगोलाकार ही बनाना है। हमारा लक्ष्य केवल व्यायाम का नहीं है। यदि श्वास के साथ जोड़ना है तो हाथ फैलायें और तब ही श्वास लें, जब वापस लायें तब श्वास बाहर निकालें।

फायदे- 1. एकाग्रता बढ़ाने के लिए। 2. फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। 3. डीप्रेसन कम होता है। 4.  Frozen Shoulder में राहत  5. उर्जा का भ्रमण होता है। 6. ह्दय के लिए भी अच्छा है। 7. एसिडिटी तथा अल्सर में राहत तथा चेस्ट एवं अस्थमा की बीमारी के लिए अच्छा है। ह्दय रोग तथा ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी फायदा करता है।

2बॉल से खेलना– महसूस करना कि उर्जा का एक बॉल उसके हाथो से खेल रहा है। उसको जमीन पर

फेंक रहे हैं तथा हाथों से पुनः पकड़ रहे हैं। जिस हाथ से हम यह क्रिया कर रहे हैं उसी अर्थात् यदि बाएं हाथ से कर रहे हैं तो बांया पैर ऊपर की तरफ उठायें, यदि दाहिने हाथ से कर रहे हैं तो अपना दाहिना पैर ऊपर की तरफ उठायें। यदि ग्रुप छोटा है तो अभ्यास करते-करते एक गोल बनाकर चलो और फिर अनुभव भी पूछो।

संकल्प– अभ्यास करते-करते यह सोचो की जीवन भी एक खेल रहे हैं। हर परिस्थिति को एक खेल की तरह देखो। उदाहरण- कोलकाता में एक धनी व्यक्ति था जिसका बेटा मर गया था। उसके बेटे को फुटबाल का बहुत शौक था। इसलिए उस व्यक्ति ने अपने बेटे की यादगार में फुटबाल का मैदान बनवाया और अपने पिताजी, जो एक छोटे से गांव में रहते थे, उनको शहर बुलाया फुटबाल देखने के लिए। उनके पिताजी ने पूरा खेल देखा। उस व्यक्ति ने पिताजी से पूछा आपको यह खेल कैसा लगा। तो उसके पिताजी ने कहा कि बेटा तुमने इतना खर्चा किया है तो 5000 रूपये और खर्च कर देता तो सभी को एक-एक बाल मिल जाती, तो सबको एक ही बाल के पीछे नहीं भागना पड़ता!

फायदे- 1. पेट की चर्बा कम होती है। 2. अर्थराइटिस में फायदा। 3. तनाव से मुक्ति। 4. स्मरण शक्ति एवं  एकाग्रता में वृद्धि। 5. डॉयबिटीज में पैरों की जटिलता कम होती है। 6. कब्ज से राहत। किडनी, डॉयबिटीज में फायदा करता है। भूख लगती है तथा डीप्रेसन दूर होता है।

3. हाँ जी का अभ्यास– अपने दोनों हाथों को एक दूसरे के पास लाओ। और फिर अपनी गर्दन को धीरे-धीरे आगे की तरफ झुकाओ तथा कमर को भी पीछे की तरफ झुकाओ। धीरे-धीरे इस क्रिया को बढ़ाओ तथा हाथों को पैरों तक लाओ।

संकल्प– परिस्थिति कैसी भी हो उसे स्वीकार करना है। हाँ करना है। सहयोग करना है।

फायदे– 1. फ्रोजन शोल्डर में राहत 2. सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस में राहत 3. आँखों के लिए अच्छा है 4.  Team spirit के लिए अच्छा है। 5. पेट की चर्बा को कम करने के लिए 6. गले की चर्बा को कम करने के लिए 7. अहंकार को खत्म करने के लिए 8. संगठन की शक्ति को बढ़ाने के लिए 9. ऊर्जा बढ़ती है।

सूचना- जिनको बैकपेन है वह आगे की ओर नहीं झुकें। केवल गले को हिलायें, कमर को नहीं मोड़ना है।

4. पैरों से गोलाकार बनाना- पहले एक पैर को थोड़ा चक्की की तरह सर्कल बनायें। पहले आगे ले आयें फिर साइड में पीछे एवं अंत में मूल स्थिति में ले जायें। उल्टी दिशा में भी चक्की लगायें। फिर दूसरे पैरों से और हाथों को नजदीक रखें और दोनों हाथों के बीच में कंपन महसूस करें।

संकल्प- मैं आत्मा अपने पैरों को आर्डर दे रही हूं। सभी अंग मेरे आर्डर के अनुरूप चल रहे हैं।

फायदे- 1. साइटिका के दर्द से राहत 2. पैरों के जोड़ो में स्टिफनेस कम करने के लिए 3. बैकपेन कम करने के लिए 4. संतुलन बनाने में 5. डॉयबिटीज में पैरों की तकलीफ को दूर करने के लिए 6. पेट के साइड की चर्बा को कम करने के लिए। सूक्ष्म रूप से यूरिनल प्राब्लम में मदद करता है।

सूचना- जिनको घुटने में दर्द है कृपया धीरे-धीरे कर सकते हैं।

आत्मा और शरीर का भेद- किसी एक व्यक्ति को बुलाकर यह गेम करवायें। पहले उसकी घड़ी लीजिए, फिर पूछिए कि यह क्या है? तो जबाब मिलेगा कि घड़ी है। यह घड़ी किसकी है? जिसको बुलाया है उसकी है। क्या वो व्यक्ति घड़ी है तो जरूर उत्तर होगा नहीं। इसी प्रकार से कोई और वस्तु ले करके पूछ सकते हैं। फिर उसे कहें कि हाथ ऊपर उठाइये। फिर पूछें कि यह हाथ किसका? फिर पूछिए की क्या आप हाथ, कान, नाक नहीं तो कौन हैं? फिर आत्मा के बारे में बताइए। अव्यक्त उर्जा को बढ़ाने के लिए बार-बार अभ्यास करें कि मैं आत्मा हूं। जितना हम सोचेंगे कि मैं शरीर हूं तो हल्के रंग का निर्माण होता है।

                वो भी आत्मा है- मैं भी आत्मा हूं। इसे सोचने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। ओरा  हल्के रंग का होता है और दूर तक फैलता है। कहते हैं महात्मा बुद्ध का ओरा दो मील तक फैलता था। जब कोई माउण्ट आबू जाते हैं तो क्या फील करते हैं। कहते हैं कि शान्ति की अनुभूति होती है। यहां के वातावरण में शान्ति के कंपन है।

शरीर कम्प्यूटर और आत्मा प्रोग्रामर है। शरीर गाड़ी तो आत्मा ड्रायवर है।

 आत्मा शरीर में आने से मूलभूत गुणों को भूल जाती है। इसलिए मैं आत्मा हूं, सोचने से वास्तविक गुणों का अनुभव होता है। जैसे पानी, अग्नि के सम्पर्क में आने से गरम होता है। लेकिन अग्नि से जब अलग करें तो ठंडा हो जाता है। इसलिए शरीर के भान को भूल जाओ। शरीर में रहते शरीर के भान से डिटैच रहो तो आत्मिक गुणों की अनुभूति होगी, देहभान से भी परे जाना है।

1. Knowledge 2. Purity 3. Peace 4. Love 5. Happiness 6. Bliss 7. Power  इन गुणों को ध्यान में रखने के लिए इस वाक्य को याद रखें-  किसने, पाया, पता, लगाओ, हंसते-बजाते पार हो जाओ। जिसमें प्रत्येक शब्द का पहला अक्षर गुण के साथ जुड़ता है, यह वाक्य याद रखने से सात गुण याद आ जायेंगे। जीवन में जीना है तो जीवन का ध्येय चाहिए और उसका भी ज्ञान चाहिए कि हमें कहाँ जाना है, क्या करना है। जिसको जिज्ञासा है वही ज्ञान में चलता है। लेडी डायना ने प्रिंस से शादी करके छोड़ दिया। अपनों से प्यार नहीं मिला तो राजाई छोड़ दी। प्रेम चाहिए, जो भी कार्य करते हैं आनंद-सुख के लिए। इससे यह सिद्ध होता है कि गुणों की जीवन में आवश्यकता है।

शरीर को जैसे आहार चाहिए, वैसे ही अंगों को गुण रूपी आहार की जरूरत पड़ती है।

मांसपेशी को प्रोटीन चाहिए, हड्डी को कैल्शियम चाहिए

इस तरह सूक्ष्म रूप में गुणों की पूर्ति चाहिए।

मस्तिष्क– ज्ञान, ह्दय – प्रेम, फेफड़ा – शान्ति, अन्तःस्रावी ग्रन्थि – आनंद, पाचन क्रिया – सुख

ज्ञानेन्द्रियां, कर्मेन्द्रियां, पवित्रता, हड्डी, मांसपेशी को शक्ति चाहिए।

5. इन्द्रधनुष बनाना– खड़े हो करके हाथ सिर के ऊपर करने हैं। सोचना है कि हाथ में पेन्ट ब्रश है। दोनां तरफ हाथ नीचे करके इंन्द्रधनुष बनाना है। हर समय एक गुण को ले करके 7 बार करें। प्रत्येक बार संकल्प करना है कि ज्ञान के कंपन ब्रेन को मिल रहे हैं तथा फेफड़ों को शान्ति मिल रही है आदि।

आत्मा का स्वरूप बताना है

1. आत्मा है सबसे मूलभूत चीज – बिन्दु point

2. आत्मा है सबसे तेज  – प्रकाश light

3. आत्मा है जिसमें सब कुछ समाया है ‚ सफेद रंग में सब रंग समाये रहते है।

आत्मा सफेद प्रकाश का बिन्दु है। Soul is point of white light

इसको जगमगाते सितारे, ज्योति के रूप में दखो।

आत्मा का स्थान ‚ ह्दय महत्वपूर्ण अंग है लेकिन इसका नियन्त्रण दिमाग से होता है। दिमाग का नियन्त्रण भी हाइपोथेलेमस से होता है। जिसको दिमाग का दिमाग कहते हैं। यही आत्मा का स्थान है। बाहरी रूप से देखा जाये जो इसका स्थान दो भृकुटी के बीच मे समझा सकते है।

आत्मा के तीन सेक्रेटरी हैं- 1. मन 2. बुद्धि 3. संस्कार

 मन उड़ता पंछी है जिसकी कोई दिशा नहीं रहती। बुद्धि के आधार पर उसको दिशा दी जा सकती है।

मन को भी साक्षी भाव से देखो और प्यार से बात करो। मन में अनंत सम्भावनायें छिपी हुई हैं। Mind works on all possibilities मन के विचार को भी देखो।

बुद्धि का काम है ‚ निर्णय करना, तर्क करना, क्या अच्छा क्या बुरा इसका भेद करती  है। जीवन में कितने भी निराश हो, बुद्धि को नियन्त्रण में रखो तो समस्या हल हो जायेगी।

                उदाहरण ‚ एक बार एक व्यक्ति की बेटी मरती है। वो बहुत दुखी होता है। छः महीने के बाद सपने मे अनेक फरिश्ते देखता है जिसमें बेटी के हाथ में मोमबत्ती बुझी हुई रहती है। उसके साथ वालों के हाथ में जलती हुई मोमबत्ती रहती है। वो बेटी को पूछता है ‚ ऐसा क्यों? बेटी कहती है कि मेरे ये मित्र बहुत अच्छे है, ये जलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन  आप के आंसू उसको बुझा देते हैं। पिता सोचता है कि मेरे रोने से मेरी बेटी यदि दुःखी है तो मुझे रोना नहीं चाहिए। उसी दिन सपने में वो देखता है, उसकी बेटी के हाथ में जलती मोमबत्ती है। इस प्रकार से समझाने से समस्या हल हो जाती है।

संस्कार ‚ न सोचते हैं, न तर्क करते हैं सिर्फ काम करते हैं। आर्डर करो तो बहुत कुछ कर सकते है।

 कहानी – एक पैसे वाले व्यक्ति को लड़की की शादी करनी होती है। उसको जमाई बहादुर चाहिए। बहुत सारे लड़के आते हैं। तब वो शर्त रखता है कि जो कोई बंगले के बाहर के स्वीमिंग पूल में कूद करके  दूसरे किनारे से निकलेगा (लेकिन इसमें 10 जहरीले सांप हैं) उसी के साथ वह अपनी बेटी की शादी करेगा। कोई भी तैयार नहीं होता है, सब डर जाते हैं। उतने में एक नौजवान कूद करके और बहुत कोशिश करके सांपों के डसने से बच करके दूसरे किनारे पर आता है। तब पैसे वाला व्यक्ति उस नौजवान से कहता है कि, तू तो बड़ा बहादुर है। तब वो लड़का कहता है, वह तो  बाद में देखेंगे, पहले मैं उसको ढूढ रहा हूं जिसने मुझे धक्का देकर जबरदस्ती अंदर डाला । इस प्रकार संस्कारों को भी धक्का देकर जबरदस्ती करो।

मन को सकारात्मकबुद्धि को दिव्यसंस्कारो  को श्रेष्ठ बनाना है

फायदे- पेट के साइड की मसल्स की चर्बा को कम करता है जिससे मेरू दंड लचीला होता है और फ्रोजन सोल्डर ठीक होता है। सूक्ष्म रूप से सभी अंगों को ऊर्जा मिलती है। सारे शरीर की स्वच्छता बढ़ती है। कमर की बाजू के मसल्स मजबूत बनते हैं।

6. आसमान में देखना : दोनों हाथों को आगे थोड़ा ऊपर उठा लो। गले एवं कमर को पीछ मोड़कर दोनों हाथों के बीच से आसमान में देखें।

फायदे- बैकपेन, सर्वाइकल, गर्दन के दर्द, कमर की चरबी कम होती है तथा आंखों को आराम मिलता है। बुद्धि विशाल होती है, उमंग-उत्साह बढ़ता है जिससे रचनात्मक शक्ति बढ़ती है।

संकल्प‚ विशाल आसमान जैसा मेरा ह्दय भी विशाल है। सूर्योदय के समय करना है। संकुचित वृत्ति कम हो जायेगी।

7. टनल से शक्ति प्राप्त करना : दोनों हाथों को सिर के ऊपर सीधा करके खींचना है। ऊपर टच भी करना है। एक पैर आगे करके बैठना है। गीत बजने पर दोनों पैरो पर पूरा बैठने की कोशिश करनी है।

संकल्प‚ परमात्मा ही आध्यात्मिक लेजन का सोर्स है। वहाँ से किरणें मिल रही हैं जो मेरे शरीर की मांसपेशियों में जा रही हैं। ज्ञान-शान्ति आदि सातों गुण विशेष अंगो को मिल रहे हैं।

प्यासे को पानी रोज कितना देंगे ‚ उसके लिए नल बनाओ वैसे ही आध्यात्मिक सोर्स बता रहा हूँ।

 –परमात्मा का परिचय देना है

परमात्मा उसे कहते हैं ‚ 1. सर्व आत्माओं का पिता 2. सर्वमान्य 3. सर्वोच्च है।

एक बार ब्रह्मा-विष्णु में झगड़ा होता है कि मैं बड़ा, मैं बड़ा, उसी समय बीच में से ज्योति जाती है । ब्रह्मा उपर, विष्णु नीचे की तरफ जाते हैं। अंत मिला नहीं। मान लिया ‚ तू बड़ा नहीं, मैं बड़ा नहीं‚ यह ज्याति बड़ी है।

8. चोरपुलिस का खेल : कमी को ढूंढना है, उसको खत्म करना है।

पैर को आगे रख हाथों को दबाकर सोचो, इस राक्षस (क्रोध ) को मार रहे हैं। आगे की तरफ झुकना है। पैर पीछे उठा सकते हैं।

फायदे- हाथ-पैर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। साइटिका के दर्द में राहत मिलती है। कंधे तथा हिप के लिए लाभदायी है। यहां पर पांच विकारों की बात को बता सकते हैं।

9. नाव चलाना : खड़ा रह करके हाथ आगे फिर ऊपर फिर दोनों बाजू से लेकर पीछे झुक करके आगे आना है।

संकल्प- जीवन रूपी नैया पार लगाले। अपनी समस्या भगवान को दे दो वही पार लगायेगा। परमात्मा आ करके किस तरह से मनुष्य आत्माओं को ज्ञान दे रहा है, बताना है।

फायदे- बैक पेन तथा सोल्डर के लिए अच्छा है, ऊर्जा पूरे शरीर में फैलती है जिससे ह्दय और अस्थमा के लिए लाभदायक है। डिप्रेशन कम होता है। असुरक्षा की भावना दूर होती है।

10. वरदान प्राप्त करना : नीचे बैठ करके हाथों में वरदान भर करके ऊपर से नीचे तक हाथ में लाना है। सारे शरीर में वरदान प्राप्त करना है।

संकल्प‚ अव्यक्त रूप में परमात्मा अपने सामने खड़े हैं। उससे वरदान प्राप्त हो रहा है। धैर्य का वरदान शरीर के अणु-अणु में जा रहा है।

11. चक्की चलाना :  हाथ नजदीक से बाजू से गोलाकार करके आगे कर गोल गोल चक्की जैसे क्रिया करनी है।

संकल्प ‚ सृष्टि चक्र में मै हीरो हूँ। अभी संगमयुग है, संस्कारों को श्रेष्ठ बनाना है।

फायदे :  ऐसा करने से पेट की चरबी कम होती है। पाचन क्रिया अच्छी होती है।

यहां पर सृष्टिचक्र का ज्ञान देना है |

12. नकारात्मक कंपनों को अलविदा– खड़े होकर अपने हाथ को उपर कर झटकना है।

संकल्प ‚ नकारात्मक कंपन बाहर जा रहे हैं। अंदर की ऊर्जा सफेद हो रही है। जो भी बिमारी / दर्द था वह सब निकल गया है। पैरों को भी झटकना है।

फायदे- सम्पूर्ण ऊर्जा स्वच्छ होती है, छोटे मसल्स, न्यूराइटिस के लिए अच्छा है।

13. फरिश्ता बननाः हाथ बाजू में फैला करके फरिश्ते की तरह हाथों को ऊपर-नीचे करना है। पैरों के द्वारा भी करते रहें।

संकल्प :  मैं फरिश्ता बन उड़ रहा हूँ। संगमयुग में ब्राह्मण बन फरिश्ता बन रहा हूँ।

फायदे- जोड़ों  के लिए अच्छा है। उत्साह बढ़ाता है। अस्थमा-एसिडिटी में फायदा है। भारीपन को दूर करता है जिससे पेट की उर्जा बैलेन्स रहती है।

14मोर की तरह उड़ना :  हाथों को पूरा फैलाकर उपर ले जायें। आश्चर्य का भाव लायें।

संकल्प ‚ वाह मेरा पार्ट वाह । वाह भगवान वाह।

सूचना- यह क्रिया करने के बाद 10-15 मिनट ध्यान कराना है।

फायदे- चेस्ट एवं ह्दय के लिए अच्छा है। इसमें डॉयबिटीज तथा डीप्रेसन दूर होता है।

मूविंग मेडीटेसन (भाग-दो)

इस व्यायाम में कुछ क्रियायें लेटकर करनी हैं और खड़े रहकर भी कर सकते हैं।

1. बच्चे से खेलना– संकल्प- मैं एक बच्चे के संग खेल रहा हूं तथा बच्चे को खिला रहा हूं। मैं अपना निःस्वार्थ प्यार बच्चे को दे रहा हूँ, यह सतयुगी प्रिंस है। ऐसा पवित्र प्रकम्पन अनुभव करो।

फायदा- पेट को व्यायाम मिलता है, निःस्वार्थ स्नेह का निर्माण होता है जिससे बदले की भावना कम होती है तथा ह्दय के लिए अच्छा है। सूक्ष्म रूप से बुढ़ापे की बीमांरियां डिमेन्शिया आदि से बचाता है।

2. ऊपर उठना– संकल्प- मुझे अहंकार से ऊपर उठना है और वास्तविक गुणों को अनुभव करना है।

फायदे- पैर तथा मस्तिष्क के लिए अच्छा है जिससे गहरी शान्ति का अनुभव होता है। साथ ही साथ आत्मा के सात गुणों का भी अनुभव होता है।

3. प्रगति के लिए झुकना :  बैठकर हाथ ऊपर-फिर नीचे झुकाना है। जो भी पार्ट मिला अच्छी तरह से निभाना है। संकल्प- जितना हो सके मुझे प्रगति के लिए झुकना है।

झुकता वही है, जिसमें जान होती है, अकड़े रहना मुर्दे की पहचान होती है।

झुकने से बड़प्पन आता है तथा दूसरों से सहयोग मिलता है।

फायदे- पाचन क्रिया तथा डॉयबिटीज के लिए अच्छा है। जिनको बैकपेन है उनको अधिक मुड़ना नहीं है।

4. चांद से खेलना– हाथों से चांद को लेकर खेल रहे हैं।

5. पर्वत उठाना :  एक पैर आगे रख हाथ फैलाकर पर्वत उठाना है। शक्ति लगानी है।

संकल्प- मुझे कलयुगी पर्वत अकेले नहीं बल्कि सभी के सहयोग से उठाना है। इन कलयुगी समस्याओं को उठाने के लिए भगवान के साथ में अपनी अंगुली का सहयोग दे रहा हूं।

फायदे- बैक पेन तथा सायटिका के दर्द को दूर करता है। हाथ के दर्द एवं डॉयबिटीज के लिए अच्छा है। मन में सहयोग की भावना जागृत होती है।

6. भक्ति में झूमनाः हाथ ऊपर करके भक्ति में झूमते हैं वैसे झूमिये। मन को शान्त, एकाग्र करने में मदद मिलती है। शान्ति की अनुभूति में खो जायें।

फायदे- ब्लड प्रेशर, ह्दय रोग, डिप्रेसन, कमर दर्द, सायनूसायटिस, डिमेन्शिया, पार्किन्सन्स रोग में आराम मिलता है।

7. बुराइयों को दबाना: पैर को पूरा उठाकर आगे रख करके पैरों को दबा करके हाथों से भी बुराइयों को दबाना है।

संकल्प- एक सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बुराई खत्म हो रही हैं। सूक्ष्म में भी नहीं है, राख भी नहीं है। मेरे में जो भी अवगुण हैं उन पर विजय प्राप्त करना है।

फायदे- पेट की चर्बा कम होती है, मांसपेशियों के लिए अच्छा है। इससे घुटनों की बीमारी से बच सकते हैं। इसमें चेहरे को भी व्यायाम मिलता है। वास्तव में हमारी बुराइयां समाप्त होती हैं।

8. साइकिल चलाना: पीठ को नीचे करके सोने की मुद्रा में एक-एक पैर गोल-गोल घुमाना है।

संकल्प- जीवन चलने का नाम है, चलते रहो, पुरूषार्थ करते रहो, रूकूँगा तो गिर जाउंगा।

फायदे- ह्दय के लिए तथा पैरों के लिए अच्छा है। जो जीवन में निराश हो रहे हैं उनके लिए भी अच्छा है कि जीवन में रूकना नहीं है।

9. पैरों से गोलाकार बनाना : बैठकर पैर आगे करना है। पैरों से एक-एक करके गोला बनाना है। दोनों पैरों से भी गोलाकार बनाना है।

संकल्प- इस सृष्टि में मेरा हीरो पार्ट है। यहां पर सृष्टि चक्र की बातों को लेना है

फायदे- हिप्स, सायटिका के दर्द में अच्छा है, किडनी एवं पुरूषों में प्रोस्टेट की बीमारी में फायदेमंद है।

10. पैरों से कैंची बनाना : पीठ को नीचे करके सोने की मुद्रा में एक पैर पूरा उठाकर दूसरे बाजू में रखना है।

संकल्प- जीवन में जो भी उल्टी बातें हैं उनसे स्वयं को सुरक्षित रखना है। झरमुई-झगमुई बातों से बचना है। मुझे सरल बनना है।

फायदे- घुटनों की बीमारी के लिए, इससे पैरों को व्यायाम मिलता है। कम्प्लीकेटेड नेचर खत्म हो जाती है। सरल व्यक्ति को चांस कम मिलता है परन्तु वह सुखी रहता है। अपनी केपिसिटी को बढ़ाना है।

“मेकअप से हो गई, असली व नकली की पहचान, ऊपर से था ताजमहल, अन्दर से कब्रिस्तान” (अन्दर से सुखी बनना सबसे आवश्यक है)

11हल बनाना : सो करके उठने पर पैरों को उठाकर सिर के पीछे ले जाना है।

संकल्प- जैसे- हल से खेती करते हैं, वैसे मुझे जीवन में अच्छे कर्मों की खेती करनी है। शुभ संकल्पों का बीज बोना है। मुझे कुछ उंच पद प्राप्त करना है। हर विचार बीज के समान है जैसे एक बीज से अनेक बीज निकलते हैं।

फायदे- पेट के लिए अच्छा है। फ्लेक्सीबिलिटी आती है जिससे हाथ-पैर मजबूत होते हैं।

सूचना- जिनको बैक पेन है उनको नहीं करना है।

12. स्वमान में आना : पेट को नीचे की तरफ करके, सोने की मुद्रा में स्थित हाथों के सहारे  छाती से सिर तक का भाग आगे ऊपर उठाना है।

संकल्प- मैं सर्वशक्तिवान परमात्मा की संतान हूं। अपने स्वमान को बढ़ाओ। अपना स्वमान ही आगे बढ़ने का माध्यम है

फायदे- हाथ-पैर, पीठ, निराशा, अस्थमा, सर्वाइकल दर्द के लिए अच्छा है।

13. उल्टी कैंची बनाना : पेट को नीचे की मुद्रा में सोने की स्थिति में स्थित होकर एक पैर को दूसरी बाजू में रखना है।

संकल्प- मुझे खिटपिट, झंझटों से दूर रहना है, अपने निगेटिव विचार को निकालना है। सरलता लानी है।

फायदे- सायटिका के लिए अच्छा है तथा पैरों को मजबूती मिलती है।

14. नाव बनानाः पेट को नीचे करके सोने की मुद्रा में स्थित होकर पैरों को मोड़ना है। मुट्ठी बन्द करके नाभि के नीचे तीन इन्च पर साइड में दो हड्डियां हैं, वहां पर सहारा देना है, जमीन पर दबाकर पैरों को ऊपर उठाने की कोशिश करनी है।

संकल्प- अपनी जीवन नैया प्रभु के हवाले कर दो।

फायदे- कमर दर्द में फायदा करता है और जीवन निश्चिंत बनता है। मेरू दण्ड लचीला एवं स्वस्थ बनता है।

प्राणायाम

कोई भी प्राणायाम सीखने से पहले सही श्वास लेना सीखें।

विधि : श्वास लेने पर पेट बाहर, श्वास छोड़ने पर पेट अंदर जाता है तो यह सही श्वास है।

उदर पटल को दबाना है। छोटे बच्चे जैसे पेट से श्वास लेते हैं वह स्वाभाविक और सही भी है।

फायदे :  पेट का व्यायाम होता है। पेट की चरबी कम होती है। 30 से 40 प्रतिशत आक्सीजन ज्यादा लेते हैं। साधारणतया लोग 12 से 18 बार श्वास लेते हैं। गहरी श्वास एक मिनट में 7-8 बार लिया जाता है, इससे आयु बढ़ेगी। कछुआ एक मिनट में 1-2 बार श्वास लेकर 150 वर्ष तक जीता है। गहरा (दीर्घ और लम्बे समयतक) श्वास जब लेते हैं तब फेफड़ों के सभी वायुकोष आक्सीजन से भर जाते हैं, श्वास छोड़ते हैं तब सम्पूर्ण वायुकोष खाली होते हैं। सभी वायुकोष का उपयोग होने से फेफड़ों की बीमारियां नहीं होती हैं। पेट के अंगों पर दबाव आने से सकुर्लेशन बढ़ता है, रक्त की तरह लिम्फ भी एक द्रव्य होता है उसका सकुर्लेशन भी बढ़ता है, जिससे जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं। ह्दय के लिए लाभप्रद है, फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। ब्लड प्रेशर कम, पाचन क्रिया एवं मस्तिष्क अच्छा कार्य करता है।

जब हम टेन्शन में होते हैं तब जल्दबाजी में गलत सीखते हैं |

कैसे सही करना है-

1. फोर्स नहीं करना है, नहीं तो दर्द होगा।

2. जब भी समय मिले आराम से पेट नीचे की तरफ करके लेटने से स्वतः ही श्वास लेने लगेंगे।

3. दो सप्ताह के बाद पेट पर न्यूज पेपर रखकर अनुभव करना है।

श्वास शरीर और मन का सेतु (ब्रिज) है। जब भी टेन्शन होता है, श्वांस बढ़ती है, उसका असर मन पर पड़ता है। श्वास को नियंत्रित करो जिससे विचार भी कम हो जायेंगे। गहरा श्वास लेने से अच्छा लगता है।

क्लीयर करने वाला श्वास- सूर्य नाड़ी, चन्द्र नाड़ी दोनों में से एक ही चलती है। जो नाड़ी नहीं चलती, उसी से श्वास लेना और छोड़ना है। दूसरी नाड़ी बन्द रखनी है। प्राणायाम शरू करने से पहले क्लीयर करने वाला श्वास दो मिनट करना है।

संकल्प– सोचना है कि ब्रेन के केन्द्र खुल गये हैं।

शान्ति प्रदान करने वाले पांच प्राणायाम

1. संपूर्ण श्वास– पहले पूरा श्वास छोड़ देना है। श्वास लेते समय हाथ ऊपर करके अर्धगोलाकार, श्वास छोड़ते समय ओम् तथा हाथ नीचे आते समय शान्ति बोलना है। ऐसा 3 बार करना है।

संकल्प- सोचना है कि मेरा आत्म विश्वास बढ़ रहा है।

2. संतुलन करने वाला श्वास– बायीं नासिका से श्वास लेना है, उस समय दाहिनी नासिका बन्द रखना है तथा बाद में दाहिनी नासिका से श्वास छोड़नी है। फिर दाहिनी नासिका से श्वास लेना है, उस समय बायीं नासिका  बन्द रखना है तथा बायीं नासिका से श्वास छोड़नी है।

संकल्प- दाहिनी नासिका से श्वास भरे तक यह संकल्प करें कि बायां मस्तिष्क एक्टिव हो रहा है और जब बायी नासिका से श्वास भरें तब यह संकल्प करें कि दाहिना मस्तिष्क एक्टिव हो रहा है, जो सबके लिए लाभदायी है।

3. शक्ति प्रदान करने वाले श्वास– धीरे-धीरे श्वास लेते हैं, अपने हाथ की अगुलियों से कान, नाक, आंख तथा मुख को बन्द रखना है। श्वास छोड़ते समय अंगुलियों को धीरे-धीरे हटाते समय ओम् ध्वनि करनी है। सर्व प्रथम नाक, फिर आंख, मुख, कान से अंगुली को हटाना है।

संकल्प- मैं आत्मा राजा हूं, सभी कर्मेन्द्रियां मेरे नियन्त्रण में हैं और मेरे में शक्ति का संचार हो रहा है।

4शीतलता प्रदान करने वाले श्वास– मुख से श्वास (सीतू की आवाज करके लेना है) लेते समय शीतलता अन्दर जा रही है। गर्दन को नीचे थोड़ी देर तक रोकना है। गर्दन को ऊपर करके श्वास को छोड़ना है।

5शान्ति प्रदान करने वाले श्वास– चार अवस्था में करना है जिसमें एक अवस्था एक-दो मिनट की हो।

1. श्वास लेते समय हाथ आगे, ऊपर करके श्वास छोड़ते समय ओम् तथा नीचे हाथ करने पर शान्ति मन में ही बोलना है। 2. हाथ को ऊपर नीचे नहीं करना है। 3.मन में ही बोलना है कि मैं अन्तर्मन की यात्रा कर रहा हूं। 4. हाथ नीचे रख करके अपनी श्वास पर ध्यान देना है। शरीर खत्म- मैं आत्मा प्रकाश हूं।

एक्टिव करने वाले प्राणायाम

1. जागृत करने वाला प्राणायाम– अपनी जिव्हा को तालू में टच करके, जिव्हा को मोड़ करके, श्वास लेकर छोड़ते समय ॐ… आवाज करना है। दिमाग तक कंपन पहुंच रहे हैं। मस्तिष्क एक्टिव हो रहा है।

2. सफाई करने वाला श्वास– मोमबत्ती सामने समझकर श्वांस लेकर मुख से श्वास छोड़ना है।

संकल्प- कचरा साफ हो रहा है साथ ही साथ अवगुण खत्म हो रहे हैं। जिनको ब्लड प्रेशर तथा डॉयबिटीज है, उनको नहीं करना है।

3. बुराइयों को भगाने वाला श्वास– दोनों हाथों को सीधा आगे रखना है। गहरा श्वास लेकर जल्दी दोड़ना है।

4. अमृतमय श्वास– सर्वप्रथम श्वास को भरना है फिर रोकना है तथा साथ ही साथ पेट को तीन-चार बार हिलाना है और फिर गहरी श्वास लेनी है। अभ्यास होने पर चालिस बार हिलाना है।

फायदे- पेट की चर्बा कम होती है, पाचन क्रिया बढ़ती है तथा मन का नियन्त्रण बढ़ता है। जिनको ब्लड प्रेशर तथा डॉयबिटीज है उनको नहीं करना है।

5. ज्वालामुखी श्वास– गहरा श्वास लेना है, छोड़ना है तथा इस क्रिया को धीरे-धीरे बढ़ाना है। लास्ट में पेट को झटके देकर श्वास को छोड़ते जाना है। पुनः धीरे-धीरे धीमी गति से करना है। ऐसे दो बार करना है। थकावट, पसीना ज्यादा आने पर, दिमाग खाली हो गया ऐसे लक्षण दिखने पर तुरन्त शवासन की स्थिति में होकर कम्पनों का अनुभव करना है। यह आसन ठंडे मौसम में करने पर अच्छा रहता है।

संकल्प- मेरे अन्दर ऊर्जा आ रही है जिससे राक्षस भस्म हो रहे हैं। ज्वालामुखी की तरह सूक्ष्म विकार भी भस्मीभूत हो रहे हैं।

सभी को प्रतिदिन के लिए एक-एक स्लोगन देने हैं-

1. सभी तक पहुंचे, सभी को सिखाओ Reach All, Teach All

2. सम्पूर्ण स्वास्थ्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसको हम प्राप्त करके ही रहेंगे।

3. स्वमान में रहना है, सबको सम्मान देना है।

4. ईश्वर अपने साथ है तो डरने की क्या बात है।

5. राजयोग अपनायेंगे, हर इंसान को सुखी बनायेंगे।

6. नम्र बनो तो, लोग नमन करते हुए सहयोग देंगे।

7. स्वयं को देख, स्वयं की कमियों को दूर करने से प्रभु का प्यार स्वतः मिलेगा।

फिजियोथेरापी व्यायाम (भाग – एक)

1. हाथों को सिर के ऊपर करके नमस्ते की मुद्रा में करके जोड़े, पुनः पैरों की अंगुलियों के सहारे उठिये। हाथों को भी उसी पोजीशन में उठाइये, पुनः वापस सिर पर लाना है।

2. एक पैर उठाइये, पैर को आगे लेकर गोल बनाइये, पैर की अंगुलियों को मोड़ करके एक बार क्लाक वाइज पुनः एन्टी क्लाक वाइज घुमाना है। इसी प्रकार पुनः दूसरे पैर से करना है।

3. पैर को पीछे मोड़कर, पैर को पकड़कर दबाइये, दूसरे हाथ को ऊपर उठाइये, फिर इसी प्रकार दूसरे पैर से करना है।

4. पैर को आगे सामने लेकर दोनों हाथ साईड में खोलें पुनः ऊपर उठायें और नीचे की तरफ करें।

5. उड़ने की मुद्रा में एक पैर को पीछे ले जाइए, पुनः दूसरे पैर से करना है।

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