Stress Management and Right Thinking

तनावमुक्त जीवन और सही विचारधारा

 सत्रहवीं सदी को विश्वास की सदी माना गया। अठारहवीं सदी को तर्क की सदी माना गया जिसमें लोग हर विषय को तार्किक रूप से सोचा जाने लगा। उन्नीसवीं सदी को प्रगति की सदी कहा गया, और बीसवीं सदी कौन सी सदी थी (श्रोताओं से पूछना)? बीसवीं सदी तनाव (Stress) की, तनाव की सदी थी और यदि तनाव इसी तरह बढ़ता रहा तो फिर इक्कीसवीं सदी क्या होगी ?  इसमें दो बातें हैं- इक्कीसवीं सदी उदासी की सदी (Age of Depression) अथवा घबराहट / खौफ (Age of Panic) की सदी होगी।

इसलिए इस सदी की माँग (Requirement) है कि हम प्रतिदिन के तनाव को ठीक प्रकार से मैनेज करना सीखें। अतः स्ट्रेस मैनेजमेण्ट एक ऐसी विधि है जिसको हमें अवश्य ही सीखना चाहिए। स्ट्रेस मैनेजमेण्ट एक महत्वपूर्ण विषय है। साथ ही साथ रोचक (Interesting) भी है। लेकिन फिर भी लोग इस बात को बहुत कम स्पष्ट रूप से समझते हैं। इसलिए हम आपको बहुत ही सरल बातें बताना चाहते हैं और कुछ नई बातें भी आपके सम्मुख रखना चाहते हैं जो शायद परम्परागत तौर पर (Conventionally) 100% भल स्वीकार न भी हो फिर भी आप तर्क से (Logically) सोचेंगे तो यह बातें आपके जीवन में आपको बहुत उपयोगी लगेंगी। जिससे आप में एक परिवर्तन आयेगा।

हम शुरू में एक अभ्यास Exercise करेंगे। जिससे आपका माइण्ड, आपकी चेतना (Consciousness) इसी बात को सुनने के लिए, समझने के लिए तैयार हो जाए और यह एक्सरसाइज बहुत ही सरल है। यहाँ जो आपको प्वॉइण्ट ऑफ लाइट दिख रहा है……….

आराम से कमर सीधी करके बैठिए यदि हाथ में कुछ लेकर अथवा पकड़कर बैठे हैं तो कृपया उसको थोड़ी देर के लिए अलग रख दें। आराम से बैठकर लगातार इसी एक प्वाइन्ट को देखते रहिए। आपका सारा शरीर आराम की स्थिति में है। और ध्यान से इस प्वॉइन्ट को देखते रहिये |

यह छोटे से अभ्यास के बाद अब हम मुख्य विषय पर आते हैं। तनाव इस समय इतना बढ़ गया है कि जब व्यक्ति के सामने कोई कड़ी कठिन (Acute) टेन्शन आता है, कोई गम्भीर समस्या आती है तब सबसे पहले वह यही चाहता है कि मैं इसको दूर (Avoid) करुँ अथवा जितना हो सके उतना इस टेन्शन से दूर रहूँ। यदि कम्पनी में मैनेजर के सामने कोई कठिन समस्या आ जाये है। तब वह पहले तो यही सोचता है कि मैं उसका टेन्शन न लू, उस टेन्शन को मैं अनदेखा कर Stress को Ignore करना, वह वास्तव में अपने ही घर के एक कोने में छुपाकर रखे हुए टाइम बम की तरह है,जो टिक-टिक कर रहा है,  ये उसको Ignore करने के बराबर है। मान ले यदि किसी के घर में टाइम बम रखा हो और उसको पता पड़ जाय, तब वह क्या करेगा? ऐसे ही जब कोई समस्या हमारे सामने अथवा Stress आता है तो उसको पहचानकर, समझकर कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए कि वह जितना हो सके तनाव (Stress) कम से कम हो ।

पिछले साठ-सत्तर वर्षों में अनेकानेक अनुसंधान हुए हैं, अनेक खोजें भी हुई है कि मनोवैज्ञानिक तनाव (Psychological Stress) का हमारे स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। एक अध्ययन प्रकाशित (Study Publish) हुआ जिसमें 100 छोटी-छोटी अध्ययन को इकट्ठा किया गया और उसका निष्कर्ष (Conclusion) यह है कि जो तनाव में रहते हैं, जिनमें डर, कोध, ईर्ष्या, दूसरों के प्रति नफरत की भावना है, उनको सिरदर्द, एसीडिटी, हाई ब्लड प्रेशर, जोड़ों का दर्द (Arthritis) ऐसी बीमारियों होने की सम्भावना रहती है। जिन लोगों में इस प्रकार की मनोभूमिकायें नहीं हैं, जिनको ऐसा तनाव नहीं है, उनसे डबल अर्थात दो गुना हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि 1000 लोगों में से 20 लोगों को यह बीमारी हो सकती है जिनको तनाव (Tension) नहीं होता हो लेकिन जिनको टेन्शन है ऐसे 40 लोगों को यह बीमारी होती है।

तो जो व्यक्ति टेन्शन रखेगा उसको बीमारी होने की सम्भावनायें डबल हो जायेगी। और स्ट्रेस से न केवल इस प्रकार की साइकोसोमैटिक (Psychosomatic) बीमारियों होती हैं। तनाव मस्तिष्क को नुकसान भी कर सकता है। यदि शरीर के अन्य अंग में बीमारी हो, कोई खराबी हो तो उसको हम पुनः ठीक भी कर सकते हैं परन्तु मस्तिष्क की जो कोशिकायें (सेल्स) हैं वह क्षतिग्रस्त (डैमेज़) हो जायें तो पुनः नई नहीं बनती हैं। तो इस कारण से यह अति आवश्यक है कि सूक्ष्म मात्रा में भी मस्तिष्क क्षतिग्रस्त (Brain Damage) न हो। क्योंकि यदि सूक्ष्म मात्रा में यह डैमेज होता रहा, यदि महीने में तीन बार भी होता रहा तो जैसे-जैसे वर्ष गुजरते जायेंगे डैमेज अधिक बढ़ जायेगा और बुढ़ापा (ओल्ड ऐज) जल्दी आ जायेगा। जिससे ब्रेन की कुछ बीमारियों भी जल्दी हो सकती है। एक और अनुसंधान हुआ है जो कि एक पब्लिश स्टडी है- मायोक्लिनिक में जो पहली बार तनाव (Tension) के मरीज आये, जिनको

तनाव था, किसी को डीप्रेसन था, किसी का डर लगता था, इस प्रकार के लोगों का ब्रेन क्षतिग्रस्त (Damage) नहीं हुआ था। लेकिन मन से वो सभी बातें महसूस (Feel) कर रहे थे। बहुत चिन्ता करते थे या तो बहुत डरते थे। नर्वस (Nervous) हो जाते थे। इन मरीजों की ठीक प्रकार से जॉच (Examine) भी की गई और उससे यह पता चला कि उनका (Brain) स्वस्थ है। कोई क्षति नहीं पहुँची है, सिर्फ मन से वह इस प्रकार की चिन्ता करते हैं, डरते हैं। यही रोगी, अलग-अलग समय पर फिर से मायोक्लिनिक में आये, कोई 6 मास के बाद कोई 2 साल के बाद और पुनः उनको चेकअप किया गया। जब दुबारा उनकी जॉच की गई तो ये पता चला कि अब उनका ब्रेन डैमेज़ भी है। इस अध्ययन से शोध कर्ताओं ने यह निर्णय लिया कि टेन्शन करते-करते अन्त में उसका दुष्प्रभाव ब्रेन पर भी पड़ता है। जिससे ब्रेन की सेल्स डैमेज़ हो जाती है। यह कैसे सम्भव है, उसके लिए बताया कि टेन्शन से 2-3 अलग-अलग बातें हुई।

  1. जब भी तनाव होता था तो मस्तिष्क में रक्त की जो नलिकायें है वह (Contract) सिकुड़ जाती थी। तनाव के कारण ये सिकुड़ती हैं। इससे खून ले जाने की क्षमता कम हो गई और ब्रेन के कुछ हिस्सों को खून मात्रा में उपलब्ध नहीं हो सका और कई (Emotions) ऐसे हैं जिनसे ब्लड प्रेशर भी बहुत बढ़ जिससे नलिकाएं (Rupture) फूट गई। परन्तु इतना मामूली डैमेज हुआ कि पता कुछ भी नहीं चला, लेकिन फिर भी बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ा कि बीमारी भी समझ में नहीं आती थी।
  2.  दूसरी प्रक्रिया (Mechanism) यह हुई कि जिन्हें तनाव है, मस्तिष्क कोश जिसमें चरबी एक आवश्यक ऊपर उसकी परत (शीट) बनी हुई होती है, टेन्शन से इसके मेटाबोलिज्म (Metabolism) की जो किया है जैसे कि लिपिड का बनना, यह भी डैमेज हुई जिसके परिणाम स्वरूप मस्तिष्क (ब्रेन) भी डैमेज़ होता गया।

स्ट्रेस की जो मूलभूत जानकारी (बेसिक अण्डरस्टेन्डिंग) है वो यह है कि हमारे दो कर्व (Curve) होते हैं, हमारी क्षमता (Ability) विविध परिस्थितियों में, जैसे आपकी, घर में सामना करने की क्षमता (Coping Capacity) इतनी है, कई बार ऐसे भी लोग होते हैं जिनको घर में टेन्शन ज्यादा हो जाती है। जब आप ऑफिस जाते है तो हो सकता है आपकी कॉपिंग कैपेसिटी बढ़ जाती हो या तो और किसी विशेष परिस्थिति में आपकी कॉपिंग कैपेसिटी बढ़ती है। यह कर्व (Curve) हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकता है। कई है जो घर में बहुत शान्त रहते हैं, विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हैं लेकिन ऑफिस में जाते हैं तो उनका चिड़चिड़ापन (Frustation) बढ़ जाता है। उनकी जो केपेसिटी है स्ट्रेस को मैनेज करने की वो कम हो जाती है, कईयों की जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, कॉपिंग कैपेसिटी भी बढ़ती है। तो कईयों की कम भी होती है। यह हर एक का विशेष (Unique) और अपना (Individual) विशेष कर्व (Curve) है। दूसरा जो डॉटेड (Dotted) कर्व (Curve) है वह माँग (डिमाण्ड) है कि जो विभिन्न Situation हमारे पास है, उसे ठीक से मैनेज करना होता है, अगर आपकी क्षमता और कॉपिंग डिमाण्ड ज्यादा है तो टेन्शन नहीं होगा। भले डिमान्ड बढ़ जाय परन्तु आपकी कॉपिंग कैपेसिटी भी उतनी बढ़ गई तो फिर आपको टेन्शन नहीं होगा, लेकिन जब भी क्षमता कम है, तब टेन्शन शुरू हो जाता है, वैसे-वैसे स्ट्रेस बढ़ता जाता है।

  • साथ ही साथ विविध अनुसंधानों में यह भी देखा गया है कि एक ही परिस्थिति में अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग रूप में उसको हैन्डल करते हैं। पाँच लोगों के सामने यदि एक ही परिस्थिति आ जाए तो तीन को स्ट्रेस होगी, दो को शायद नहीं भी होगी तो परिस्थिति एक समान परन्तु प्रतिक्रियायें भिन्न-भिन्न, इसका कारण क्या है? इसका महत्वपूर्ण (Important) कारण है हमारा दृष्टिकोण (Approach)। एक परिस्थिति है आपके सामने, यदि इसी परिस्थिति को आप डर के रूप में लेते हैं, घबराते हैं उस परिस्थिति में क्या होगा, मैं नहीं कर सकूँगा, ऐसा दृष्टिकोण रखते हैं, तो आप में सामना करने की जो कैपेसिटी है वो कम हो जाती है और आप पूरा सामना (कोप) नहीं कर पाते इस Situation को इसके कारण समस्या जारी रहेगी, डर निर्मित होगा, व्यक्तित्व में भी कमी सामने आयेगी। अब वही Situation है परन्तु उस Situation को अगर आप चुनौती (Challenge) के रूप में लेते हैं कि मुझको इसे हैन्डल करके दिखाना है, इस परिस्थिति से मुझे पास होना ही है तो आपकी जो कॉपिंग मैकेनिज्म है पूरी होती है, कि Situation को आपने पूरी तरह से मैनेज कर लिया है और यदि आपने ठीक ढंग से मैनेज़ किया तो आप अनुकूल होते जाते हैं, फिर अगर ये परिस्थिति भविष्य में भी आ जाए तो भी आप उसको अच्छी रीति से हैन्डल कर सकेंगे और आपके जीवन में तरक्की होती है, प्रगति होती है, आपकी कैपेसिटी बढ़ती जाती है। आत्मविश्वास (Confidence) बढ़ता है कि मैं इसका ठीक प्रकार से सामना कर सकूँगा।

यह सत्य घटना है आपको बताते हैं| लारसन एण्ड टूब्रो एक बहुत बड़ी कम्पनी है जिसके मैनेजर मुम्बई में कार्यरत थे और उनको एक दूसरे शहर में प्लाण्ट(plant) शुरू करने के लिए कहा गया। जब उनको बताया गया तब वे बहुत घबराये, बहुत डरे कि वहाँ का माहौल कैसा होगा, मैं कभी छोटे शहरों में रहा नहीं हूँ, बच्चों की पढ़ाई का क्या करूँ, अपने परिवार से दूर रहना पड़ेगा इतना समय, परन्तु उनकी पत्नी ने हौंसला (Motivate) दिया कि आप डरो नहीं, आप इस Situation को चैलेन्ज के रूप में लो, आप नहीं डरेंगे तो आपकी ही जीत होगी। इससे कुछ सीखने को मिलेगा, साथ-साथ आप की तरक्की (Promotion) की सम्भावनायें भी हो जायेंगी। और जब वह मैनेजर नये स्थान पर गए, आठ महीने की मेहनत के बाद सारा नया प्लाण्ट शुरू किया तब उन्होंने स्वयं एक वर्कशॉप में अपना अनुभव सुनाया कि अब मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि मुझको परिवार से थोड़ा समय दूर रहना पड़ा परन्तु मुझको विश्वास आ गया है कि यदि मुझको विदेश में, भेजा जाए तो भी मैं कार्य कर सकता हूँ और इसके कारण मुझको पदोन्नति (Promotion) भी मिली।

यह तो एक Situation है, हो सकता है आपके सामने इससे अलग समस्यायें आती है परन्तु उन समस्या को भी अगर आप चुनौती के रूप में लेंगे तो वास्तव में आपकी कॉपिंग कैपेसिटी बढ़ती जायेगी। इसको कह विशेषज्ञों (एक्सपर्ट) ने यू-स्ट्रेस (Eu-Stress) कहा है। वास्तव में जब कोई भी Situation आती, तो शुरू में तो स्ट्रेस नहीं है जैसे आमतौर पर हम जानते हैं कि कॉलेज के छात्र वर्ष की शुरूआत में पढ़ते नहीं है, उनको कहो तो भी वह नहीं पढ़ते लेकिन परीक्षा के 15 दिन शेष रहने के समय रात भर जागकर पढ़ते हैं। तो  वो कैपेसिटी कहाँ से आ गई? पहले भी वही व्यक्ति था, परन्तु इतना ज्यादा क्यों पढ़ने लगे क्योंकि परीक्षा का कन्सर्न (Concern) हुआ। परीक्षा ने मोटीवेट भी किया कि क्या होगा, नहीं तो फेल हो जायेंगे, इसके कारण पढ़ने लगे, और जब कन्सर्न और मोटीवेशन हो जाता है, तो कार्यक्षमता (Performance) में भी सुधार होता है। परन्तु वो अगर स्ट्रेस बन जाए, ये एक डिमार्केटिंग लाइन विभाजित करने वाली रेखा (Demarcating Line) है। जिसको वास्तव में जानना मुश्किल है कि कहाँ कन्सर्न स्ट्रेस बन जाती है, यदि विद्यार्थी भी डरने लगे तो उसकी पढ़ने की क्षमता कम होती है, स्ट्रेस तब है जब वह बात आप पर निगेटिव प्रभाव डालने लगती है।

जब भी कोई समस्या (Problem) आती है तो आम व्यक्ति हमेशा शिकायत (Complain) करता है, या तो हम परिस्थिति के बारे में शिकायत करते हैं या हम अन्य किसी को दोष देते हैं, मेरी गलती नहीं है, यह तो उनकी गलती है। एक अनुसंधान किया गया था। जिसमें करीब 500 रोगी, जब वे भी मनोचिकित्सक (Psychiatrist) के पास आये तो उनको वास्तव में अलग-अलग प्रकार की बीमारियों थी, उन सभी 500 रोगियों से ये पूछा गया कि आपकी बीमारी का मूल कारण क्या है, आपको ये बीमारी कैसे हुई है तो Psychologists को भी यह जानकर आश्चर्य हुआ कि 81 प्रतिशत रोगियों ने यह कहा कि मेरी बीमारी के लिए कोई और जिम्मेवार है, मैं अपनी इस बीमारी के लिए जिम्मेवार नहीं हूँ। एक बूढ़ी महिला जिनको कि Depression था उससे यह पूछा गया कि आपके डिप्रेसन का मूल कारण क्या है, तो उसने तुरन्त ही जबाब दिया कि मेरी बहू (बूढ़ी महिला के बेटे की पत्नी)। इसी प्रकार से एक नौजवान महिला जिनको सिरदर्द की शिकायत थी, उनसे जब यह पूछा गया कि आपके सिरदर्द का मूल कारण क्या है? तो उसने कहा कि मेरी सास (नौजवान महिला के पति की माँ) ।

इसी प्रकार से कम्पनी में जब टेन्शन होता है तो मैनेजमेण्ट कहती है कि यूनियन लीडर इसके जिम्मेदार है। और यूनियन के नेता यह मानते हैं कि मैनेजमेण्ट हमारी परिस्थिति को नहीं समझती है जिसके कारण यहाँ पर टेन्शन है। तो इससे वास्तव में स्ट्रेस कम नहीं होता है बल्कि इससे स्ट्रेस बढ़ती ही है और साथ-साथ हम अपने लिए कुछ नहीं करते। परन्तु सही Approach क्या होना चाहिए, तो पहले यह देखें कि आज की हमारी Situation क्या है, आज जो हमारे में से अधिकांश लोग हैं, यदि हम सारे दिन को एक गोले (Circle) के रूप में वर्णन करें। जिस सर्कल में सारे दिन की जो परिस्थितियों हैं वो आपके सामने आती रहती है। तो ये जो विभिन्न परिस्थितियाँ है उसमें ये जो Field of Control है जो आपके नियन्त्रण में चीजें हैं वो आप करते है। किसी की शिकायत नहीं करते हैं वह Field of Control बहुत छोटा सा है। और ये जो इतना बड़ा है ये Field of Complain है, अगर आप अपना आत्म विश्लेषण सारे दिन में करो, आपके विचारों के विषय में तो आप पायेंगे कि हम शिकायत औरों के लिए ज्यादा करते हैं कि इन्होंने ये सहयोग मुझको नहीं दिया तो ये ऐसा हो गया और जो सेल्फ ट्रोल वो बहुत कम है |जो मेरे कन्ट्रोल में है वह मुझको करना है, शिकायत  नहीं करनी है और बेकार से बेकार Situation में भी बहुत कुछ आपके कन्ट्रोल में होता है। जिसका एक बहुत सुन्दर उदहारण है।  Dr. Victor Franklin जो मशहूर Psychiatrist थे और दूसरे विश्व युद्ध में Jewish होने के कारण हिटलर की सेना ने उनको बन्दी बना लिया साथ-साथ उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी लिया और उनको बहुत सारी यातनायें दी। विक्टर फ्रैंकलिन की आँखों के सामने उनकी बहन को गैस चैम्बर में डाल दिया गया और किसी भी क्षण उनको भी मौत आ सकती थी |ऐसी विषम परिस्थिति में 99%  लोग ही Depressed हो जाते, परन्तु विक्टर फैकलिन Nervous नहीं हुए, उन्होंने जो उनके कन्ट्रोल में था वही किया, उन्होंने शिकायत नहीं की, निराश भी नहीं हुए कि मैं कुछ भी नहीं कर सकता है। उन्होंने क्या किया? कि जो वहाँ पर और सारे बन्दी थे, उन सबके व्यवहार (Behaviour) का अध्ययन (Study) किया कि ये लोग क्या कर रहे हैं। लोगों को देखने के बाद जब दूसरा विश्व युद्ध पूरा हुआ तब उन्होंने एक पुस्तक लिखी “मैन इन सर्च ऑफ मिनींग ” (Man in Search of Meaning) जो कि सबसे अधिक बिकने वाली किताब बनी। जिसके पास जीवन में कोई Meaning थी वही जिन्दा है, उन्होंने यही बताया कि जिनके पास कुछ कारण था, जिनको अपनी बेटी की शादी करनी थी, बच्चों की पढ़ाई करने का ध्यान रखना था उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण काम था। तो ये सारी यातनाओं को भी वो झेल पाये और जिनके पास कोई Meaning नहीं था, वो लोग मर गये।

एक और बात देखी कि मानव की एडाप्ट (Adapt) करने की शक्ति कितनी है। विभिन्न समस्या के बीच में अपने आपको सम्भालना, वो कितनी महान कैपेसिटी हमारे पास है, उन्होंने देखा कि उन दिनों में छोटे-छोटे थोड़े से बिस्कुट सभी कैदियों को दिए जाते थे जो वास्तव में जीवन निर्वाह के लिए बिल्कुल पर्याप्त नहीं थे फिर भी उनमें से कई कैदी ने बिस्कुट बचा करके अपने पास काफी सारे बिस्कुट इकट्ठे कर लिए थे, ऐसा क्यों? क्योंकि उन्हें था कि हो सकता है कुछ दिन बाद ये बिस्कुट भी देना बन्द कर दें तो कैसे हम जिन्दा रहेंगे, इसके कारण बहुत कम बिस्कुट थे लेकिन फिर भी वे बचत कर पाते थे ऐसी कई बातें उन्होंने देखी और यह एक उदाहरण है कि जो आपके कन्ट्रोल में है अगर वो आप करेंगे तो भयानक से भयानक परिस्थिति में भी तनाव नहीं होगा, हमारे सामने आमतौर पर जो घर में समस्या आती है, वो तो मामूली सी समस्या है, तब तुरन्त यदि यह सोचो कि मेरे जो कन्ट्रोल में है मुझे करना है। और सचमुच ऐसा करने लगें, बहुत सारी चीजें आपके कन्ट्रोल में होती हैं जैसे किसी नई कला को सीखना, कोई अच्छी किताब को पढ़ना या एक्सरसाइज़ करना और कुछ बात, बहुत सारी चीजें हैं जो हमारे कन्ट्रोल में है। सभी अगर हम ये सोचें कि अभी हमको किसी के बारे में शिकायत नहीं करनी है, परिस्थिति के बारे में भी मुझे नहीं करनी है परन्तु जो चीज मेरे कन्ट्रोल में है, यह मैं करने लगें और सचमुच करिए और करते-करते प्रतिदिन यह होना चाहिए कि ये जो आपका सर्कल ऑफ सेल्फ कन्ट्रोल है, वो बढ़ जाए, अगर अभी दो घंटा आपके सेल्फ कन्ट्रोल में जाते हैं तो 3, 4 फिर पाँच घंटा जाय, ऐसे करते-करते अन्ततः यह स्टेज बननी चाहिए कि आपका जो सर्कल है वो अन्त में ऐसा हो जाये, वही सर्कल है, फिल्ड वही लेकिन इसमें जो फिल्ड ऑफ सेल्फ कन्ट्रोल वो बड़ा बन जाय और फिल्ड ऑफ कम्प्लेन है वो कम से कम रहे। यह करने से जीवन में प्रगति भी होगी और आप सफलता को भी पायेंगे। और साथ-साथ में टेन्शन भी कम हो सकेगा।

यह भी समझना हैं कि विचारों का महत्व क्या है? सारे दिन में हम कितने विचार करते हैं? सारे दिन में हम 30 हजार से 50 हजार विचार करते हैं क्योंकि एक विचार जो आता है, एक दो सेकण्ड ऐसे अधिक समय तक नहीं टिकता है, वो बदल जाता है, भल उसमें सेकण्ड के अन्तराल से विचार बदलता रहता है। भल कई विचार जरूरी भी है क्युकी विचारों को जब आप ठीक प्रकार से मैनेज करेंगे तो समय को भी मैनेज कर सकेंगे और जीवन में प्रगति भी होगी इसीलिए आवश्यक विचारों को करना वो भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के रूप में अगर आपको कोई चीज खरीदना है अपनी आवश्यकता के लिए तो अगर आप अभी ही सोचेंगे कि मुझे जा करके ये चीज़ बाजार से खरीदनी है तो इस समय ये भी गलत सोच है। रॉग थॉकिंग है क्योंकि अभी तो आपको ध्यान देना जो आवश्यक विचार है वो भी उसी समय करो, जब आप फ्री होंगे तब आप उस विचार को करिए और वो काम पूरा कर लीजिए, तब विचारों को हम ठीक प्रकार से मैनेज कर सकेंगे और कुछ तो हमारे ऐसे विषैले (टालिसक विचार होते हैं कि जिससे सचमुच जहर हमारे शरीर में निर्मित होता है और उसको भी हमें खत्म करना चाहिए।

साथ ही साथ स्ट्रेस को मैनेज करने का जो तरीका माना गया है वह है कि अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाइए क्योंकि हम परिस्थिति को नहीं बदल सकते लेकिन अपनी मनःस्थिति को जरूर बदल सकते हैं, दृष्टिकोण क्या है? इसको हम एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करेंगे एक डाक्टर थे जो कॉलेज के विद्यार्थियों को यह समझाना चाहते थे कि शराब पीना बहुत ही खराब चीज है तो उन्होंने सोचा कि मैं प्रैक्टिकल प्रयोग के द्वारा ये बताता हूँ। क्योंकि शब्दों से भल न भी समझे पर प्रयोग को देखने से जरूर समझ जायेंगे तो इसलिए उन्होंने दो गिलास लिए, एक गिलास में पानी भरा था और दूसरे में शराब भरा था। जो पेट में कीड़े रहते हैं ऐसे दो कीड़े भी वो ले आये थे उन्होंने एक कीड़े को पानी में रखा तो वह तैरने लगा और दूसरे कीड़े को शराब में रखा था वह कीड़ा डूबकर मर गया। पुनः विद्यार्थियों से पूछा कि इससे क्या सीखने को मिलता है? तब तक नौजवान लड़का अपनी कुर्सी से कूद पड़ा उसने कहा महोदय (सर) इससे एक बात सीखने को मिलती है कि अगर हम पानी पियेंगे तो पेट के कीड़े नहीं मरेंगे अगर हम शराब पियेंगे तो पेट के कीड़े मर जायेंगे। यह है हमारा दृष्टिकोण (Attitude) उसको जो देखना था वही उसको दिखाई दिया। वास्तव में शराब का हमारे लीवर और मस्तिष्क पर बुरा असर होता है। अगर आप दृष्टिकोण चेन्ज करेंगे तो आप यथार्थ में इस चराचर जगत की हर बात को बदली कर सकते हैं।

साथ ही राइट थींकिग (सही विचार धारा) भी चाहिए क्योंकि हम कई प्रकार से रॉग थींकिंग भी करते हैं, राईट थींकिग का अर्थ क्या है कि परिस्थिति जैसी है वैसे ही आप देखिए, अगर आपके सामने समस्या भी है, अगर समस्या 15 प्रतिशत है। तो 15 प्रतिशत ही देखिए, उसको 80 या 90 प्रतिशत मत बना दीजिए, कई प्रकार से हम रॉग थींकिंग करते हैं। एक जज थे उनकी धर्मपत्नी रोज जब वो ऑफिस से आते थे तब उनको अच्छा अच्छा खाना बनाकर देती थी परन्तु कभी भी उसकी प्रशंसा नहीं करते थे, एक दिन कोई कारण से गरम खाना नहीं दिया तो उन्होंने बहुत गुस्से से थाली फेंक दी, कि ये क्या भोजन है? कुछ आता है भोजन बनाना? मैंने बहुत बड़ी गलती की तुमसे शादी करके । वास्तव में उन्होंने छोटी सी समस्या को बड़ा कर दिया। वो राइट थींकिंग नहीं है, राइट थींकिंग क्या है कि 365 दिन में एक दिन ही ठण्डा भोजन मिला है और कारण क्या हो सकता है उसको भी आप जानिए, कि क्या उसकी तबियत ठीक नहीं है या बच्चों को स्कूल से लाने में ज्यादा देरी हो गई या घर में ज्यादा मेहमान आ गए थे, वो पता करके अगर आलस्य के कारण ही उसने ऐसा किया है, फिर तो आपको आलोचना करने का अधिकार है। और साथ-साथ में राइट एप्रोच है कि रोज आपको गर्म भोजन मिलता है तो आपको उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, अगर वो आप करेंगे तो फिर एक दिन टीका करने का भी हक है।

एक बहन थी जिसनें अपने पति को दो टाई गिफ्ट में दी फिर कुछ दिनों के बाद एक ऐसा मौका था कि उनके पति ने एक टाई पहन ली, जब वे उस दिन घर वापस आए तो वह बड़ी उदास-उदास और नर्वस बैठी थी तो उन्होंने पूछा कि भाई आप नर्वस क्यों हो? क्यों उदास हो? तो उसने कहा कि क्या आपको दूसरी टाई पसन्द नहीं आई?, ये भी रॉग थींकिंग है क्योंकि एक साथ तो दो टाई कभी भी नहीं पहन सकते। इसको कहते निष्कर्ष पर पहुंचना (Jumping on Conclusion)| आपको आगे बतायेंगे कि कई बार कुछ घटनायें होती है और हम निष्कर्ष निकाल लेते है कि वो ऐसा हुआ होगा तो उन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया होगा, इसलिए राइट थिंकिंग कीजिए। अगर वह बार-बार एक ही टाई पहने तो फिर आप कह सकते है कि शायद उसे वही पसन्द आई जो दूसरी टाई है वो शायद पसन्द नहीं आई, इस प्रकार से हमारे जीवन में राइट थीकिंग का होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

अगला सत्र Relaxation पर है और सभी बातें Theory में बहुत अच्छी हैं कि सकारात्मक चिंतन करना चाहिए, राइट थीकिंग करना चाहिए, समस्याओं को चैलेन्ज के रूप में लो, जो चीजें आप कन्ट्रोल में है वहीं करो। परन्तु प्रैक्टिस में उसको अपनाना मुश्किल है। अपना तो जरूर सकते हैं परन्तु इसमें अधिक मेहनत होती है। Relaxation शायद सबसे सहज और सरल तरीका है, यदि आप कोई उपयुक्त रिलेक्शेसन विधि सीख लो तो रिलेक्शेसन और स्ट्रेस एक साथ नहीं हो सकते, अगर आप Relaxed हैं तो तनाव में नहीं होंगे और Relaxation किसी हद तक शारीरिक भी हो सकता है तो ऐसी कुछ विधि हम आपको इस सत्र में बतायेंगे कि जिस विधि (Technique) को सीखने से सचमुच आप आपने आपको रिलेक्स महसूस कर सकते हैं। एक हार्ट पेशेन्ट था जब वह अपने डाक्टर (कार्डियोलॉजिस्ट) के पास गया तो उसने सारी उसकी जाँच की और देखा कि उसका हार्ट तो बिल्कुल नार्मल है लेकिन वह बहुत टेन्शन लेता है तो इस कारण उसके यह लक्षण (Symptom) निर्माण हो रहे थे। उन्होंने कुछ गोलियाँ भी दी पर कहा कि ये दवाई इतनी असर नहीं करेगी लेकिन आपको Relax करना चाहिए और अगर आप Relax करेंगे तो आपकी समस्या समाप्त हो जायेगी। वो रोगी बेचारा चला गया फिर से करीब एक महीने बाद पुनः वही लक्षण ले करके आया, दुबारा डाक्टर ने उसको चेक किया तो पता चला कि वही प्राब्लम है, हॉर्ट तो बिल्कुल नार्मल है, तो फिर से उसने अच्छी तरह से उसको समझाया कि भाई, आपको Relax करना बहुत जरूरी है, जब तक आप Relax नहीं करोगे, आपकी समस्या खत्म नहीं होगी, 25 दिन बाद वह दुबारा डाक्टर के पास आया फिर से वही हिस्ट्री थी, इस बार डाक्टर को थोड़ा गुस्सा आ गया, डाक्टर ने कहा- मैं तुमसे बार-बार कहता हूँ Relax हो जाओ, Relax हो जाओ पर तुम Relax नहीं होते, मैं क्या करूँ तुम्हारे लिए? तो बेचारा पेशेन्ट शान्ति से सुनता रहा और फिर कहा डाक्टर साहब मैं भी जानता हूँ आपने मुझे पिछले दो बार यही सलाह दी है परन्तु आपने यह नहीं बताया कि मैं कैसे Relax करूँ। हम आपको सचमुच कुछ ऐसी विधि के बारे में बतायेंगे प्रैक्टिकल Relaxation की जिससे आप Relax हो सकें।

और हमारा अन्तिम सत्र होगा “Science of Meditation” पर कि आज मेडिटेशन एक फैशन बन गया है, कई लोग वास्तव में कुछ भी नहीं करते तो भी कहते हैं कि हम मेडिटेशन कर रहे हैं। और वह एक स्तर सूचक (Status Symbol) बन गया है कि मैं मेडिटेशन करता हूँ, परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि वास्तव में मेडिटेशन क्या है| मेडिटेशन और प्रार्थना में भी फर्क है, प्रार्थना में हम भगवान के साथ बातें करते हैं और भगवान को हम अपने मन की बातें, गाथा आदि सुनाते हैं। और मेडिटेशन में भगवान की बातें हम सुनते हैं, प्रेरणायें लेते हैं परन्तु वास्तव में मेडिटेशन की परिभाषा क्या है, वह तो पता हो। डाक्टर सिल्वा मूर्ति (Dr. Silva Murthy ) जो देश के विख्यात फिज़ियोलॉजिस्ट है जिन्होंने एक बार यह परिभाषा दी थी, यह इसलिए भी बहुत अच्छी है कि इसमें सारे मेडिटेशन का सार समाया हुआ है, और सब बातें भल आप भूल भी जाओ परन्तु इतना जरूर याद रखना, उन्होंने कहा कि- क्या है Meditation? Meditation is Communion of inner light with the supreme light, कि हमारे अन्दर एक जीवन शक्ति है और जो परम शक्ति है वह भी वास्तव में प्वॉइन्ट ऑफ लाइट है और उनका मिलन, उनका Communion, वह वास्तव में मेडिटेशन है। जो बाते हमने आपको बताई है, वह भी बहुत उपयोगी हैं, आपको समझना है कि स्ट्रेस क्या है? उसे आप चैलेंज के रूप में लीजिए। जो आपके कन्ट्रोल में हैं आप वही कीजिए, आप अपने दृष्टिकोण (Attitude) में भी परिवर्तन लाइए, हर परिस्तिथि में राइट थिंकिंग कीजिए, और साथ-साथ Relaxation और Meditation की भी कोई विधि सीखकर प्रतिदिन जीवन में थोड़ा अभ्यास करेंगे तो सचमुच हम तनाव से मुक्त हो सकते हैं और जीवन में शान्ति प्राप्त करना, सफलता प्राप्त करना वह सभी के लिए सम्भव होगा। तो अब आपको क्या करना है? जो बातें आपको है, इनको जीवन में अपनाना सरल भी है, व्यवहारिक भी है।

ये व्यक्ति देखो कैसा है? यह टेन्शन में है, आज हम सब की यही स्थिति है। वास्तव में हम टेन्शन की दूर करना बहुत मुश्किल समझते हैं। परन्तु हमको सिर्फ अपनी कॉन्सीअसनेस (Consciousness) को करना है क्योंकि सारी ही कान्शिअसनेस (Consciousness) उल्टी हो गई है। तो सिर्फ इतना सा कर दीजिए, आपके जीवन में टेन्शन नहीं आएगा।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.