Understanding Stress, What Stresses You?

तनाव को पहचानिए, कि हम तनावग्रस्त क्यों है ?

स्ट्रेस मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन है और हमको इस तनाव से लड़ाई करना सीखना ही होगा। जिससे हम इसको कम कर सकें। लेकिन तनावमुक्त जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है हम यह डिफाइन करें कि सचमुच स्ट्रेस क्या है? क्योंकि जब तक कोई भी बात की परिभाषा का पता हमें नहीं तो कभी भी जब आपको स्ट्रेस आयेगी तो आप उसको पहचान नहीं पायेंगे। आपको पता नहीं चल सकेगा कि मुझे स्ट्रेस है, और अगर आपको पता नहीं चलेगा तो उसको ठीक करना मुश्किल होगा तो इसलिए सही परिभाषा को जानना भी बहुत जरूरी है। प्रोफेसर हैन्सले जिन्होंने स्ट्रेस पर काफी कार्य किया, उन्होंने इस बात को प्रचारित भी किया, उन्होनें एक शब्द दिया “Stressed out” जिसको स्ट्रेस बहुत है, जैसे आजकल कई लोग कहते भी हैं कि “I am Stressed out” मतलब मुझको बहुत टेन्शन है और उन्होंने स्ट्रेस की परिभाषा भी दी जिसको सभी स्वीकार भी करते हैं, और भी कई परिभाषायें है, अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग रूप से इसका वर्णन करते हैं लेकिन हैन्सले ने जो परिभाषा दी है उसमें कहा कि स्ट्रेस एक Stimulus है जिसका शरीर पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। कोई भी घटना, परिस्थिति या बात है उसका शरीर पर विशिष्ट प्रतिक्रिया होती है, और वह Effect भी उन्होंने विस्तार में बताया जिनके शरीर में होने से हम स्ट्रेस कहेंगे। एक तो वह जिससे Muscle में टेन्शन बढ़ जाता है, हमारे लिम्फ नोड छोटे हो जाते हैं, फैल जाते हैं और Cortisol बहुत अधिक मात्रा में Secrete होने लगता है। जो भी Stimulus इस प्रकार का Response निर्माण करता है, उसको उन्होंने स्ट्रेस कहा। आगे चलकर हैन्सले ने स्ट्रेस की Stage बताई जो General Adaptation Syndrome (GAS) के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसमें उन्होंने बताया कि जब भी स्ट्रेस आता है तो वास्तव में क्या होता है। लेकिन हम आपको एक सहज परिभाषा बताना चाहते हैं जो हमारी Medical Wing में बताई गई है जो बहुत सरल है। यहाँ तक कि एक अशिक्षित व्यक्ति भी उससे स्पष्ट समझ पायेगा कि मुझे स्ट्रेस है या नहीं? वह परिभाषा है कि स्ट्रेस हमेशा बाहरी ही नहीं होता है अर्थात कोई भी बाह्य या आन्तरिक घटना जिसका हमारे मन और शरीर पर दुष्प्रभाव होता है सिर्फ वाही स्ट्रेस नही है , अधिकतर लोग ये मानते हैं कि बहुत गर्मी पड़ना या कार्य का दबाव बढ़ जाना ही तनाव का कारण है, लेकिन तनाव आन्तरिक भी हो सकता है जैसे ईर्ष्या होना। कोई भी बात नहीं है पर आपको ईर्ष्या का भाव आ रहा है, ये भी स्ट्रेस है। कोई आपकी आलोचना करते हैं, आप अन्दर ही अन्दर रिपीट करते हैं, ये भी स्ट्रेस है, गुस्सा आना भी स्ट्रेस है, कोई भी बात को आप मन से महसूस करते हैं, नर्वस हो जाते हैं, डर लगता है । Anxiety बढ़ जाती है और जब ऐसा होता है तो शरीर पर इसका असर पड़ता ही है, और मन पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। शायद शरीर पर प्रभाव हमें न भी पता पड़े पर मन का प्रभाव तो जरूर हमें समझ में आ जायेगा। स्ट्रेस सिर्फ दुखमय घटना ही नहीं होती है या जैसे कि कोई समस्या आपके सामने आ जाती है, वही स्ट्रेस नहीं है परन्तु बहुत खुश होना, वह भी वास्तव में स्ट्रेस है | वर्ष 1998 में भारत और पाकिस्तान के मध्य क्रिकेट मैच हुआ जिसमें आखिरी गेंद पर भारत मैच जीत गया, तो दूसरे दिन अखबार में न्यूज आया कि दो लोगों को हॉट अटेक हो गया। एक को आसाम में तो दूसरे को सौराष्ट्र में, तो वह खुशी का समाचार था। सौराष्ट्र में तो वह आराम से टी.वी. देख रहा था और जैसे ही भारत आखिरी गेंद पर जीता वैसे ही वह कूद पड़ा और उसको अटैक पड़ा जिससे वहीं खत्म हो गया। तो अत्यधिक आनन्द भी तनाव का रूप होता है जिसको कि ठीक प्रकार से मैनेज करना सीखना चाहिए। तो इस परिभाषा के आधार से आप प्रतिदिन स्वयं अपना विश्लेषण (Analysis) कीजिए, वास्तव में दिन में भी दो-तीन बार, जब-जब भी आप फ्री होते हैं तब आप जरूर Analyse करें कि जो भी घटनायें आपके सामने होती हैं, कोई आपको कुछ कह देता है, कोई बात होती है क्या मेरे मन पर उसका बुरा असर हो रहा है, क्या मैं कष्ट महसूस कर रहा हूँ। कई लोग कहते हैं कि आपने अगर एक गाड़ी खरीदी है तो गाड़ी पुरानी होती है? कितने साल बाद पुरानी होती है? 5, 10, 20 साल बाद? (जब पड़ोसी के पास नई गाड़ी आ जाती है) इससे हम ये बताना चाहते हैं कि वास्तव में तनाव हमार अन्दर है। वास्तव में कुछ न हो तब भी व्यक्ति को ईर्ष्या आती है और वह Situation को भी आप Analyse करिए लेकिन यदि किसी को सम्मान मिल रहा है और हम दुखी हो जाते हैं, तो वह भी वास्तव में एक टेन्शन है | अभी यदि आप Analyse करेंगे कि दिन में मुझे कितनी बार टेन्शन होता है तो इसे कम करने का जो सही उपाय है वह भी अपना सकेंगे | तो इस परिभाषा को आप बार-बार सारे दिन में उपयोग करते रहिए जिससे आप इसको दूर करने में कदम उठा सकें। इसके बाद है GAS- हैन्सले ने जो GAS का वर्णन किया है, उन्होनें तीन स्टेज बताये- पहला है Alarm, जैसे अलार्म बजता है ऐसे जब भी टेन्शन आता है तो हमारे अन्दर का भी अलार्म बजता है। आपको वास्तव में वो सूचना देता है कि कुछ गलत हो रहा है परन्तु आम तौर पर हम नजरअन्दाज़ करते हैं या तो हम बहुत ज्यादा और ही चीजों में उलझे होते है। कि जैसे अलार्म हमको सुनाई नहीं दे रहा है। जैसे घर में अलार्म बज रहा है और आस-पास शोरगुल ज्यादा है मान लो पटाखे बज रहे हैं तो अलार्म हमें सुनाई नहीं देगा तो इसके कारण उसे हम कई बार नजरअन्दाज कर देते हैं। वास्तव में पहली स्टेज, जब अलार्म बजता है तब ही हमें कदम उठाने चाहिए लेकिन वह हमको पता नहीं पड़ता, इसके कारण टेन्शन जारी रहता है और कुछ समय के बाद दूसरी स्टेज आती है Adaptation या Resistance कि हम उस परिस्थिति में Adapt होने लगते हैं या तो शरीर और मन में एक Resistance पैदा हो जाता है और हमें ये लगता है कि कोई टेन्शन नहीं है। वो शुरू में जो फीलिंग हुई, शारीरिक भी जो चिन्ह दिखाई दिए, वो खत्म हो जाते हैं और यह दूसरी स्टेज बहुत ही Critical स्टेज है जिसमें व्यक्ति यह सोचता है कि मुझे कोई टेन्शन नहीं है। जिनको भी हाई ब्लड प्रेशर होगा वह जानते हैं, शुरू में आपका बी. पी. बढ़ा तो शरीर में कुछ चिन्ह दिखाई देते हैं परन्तु 1, 2 साल बढ़ा ही रहा तो फिर वह आपके लिए नार्मल हो जाता है, फिर उस समय आपको कोई शारीरिक चिन्ह दिखाई नहीं देते हैं और अगर यह फिर भी जारी रहे तो उसके बुरे असर हो ही रहे हैं क्योंकि प्रत्येक तनाव युक्त विचार का भी हमारे शरीर के सभी 75 ट्रीलियन कोशिकाओं पर बुरा असर होता है। इस प्रकार से एक भी नकारात्मक विचार आने से हमारे शरीर में प्रत्येक कोशिकाओं को Negatively प्रभावित करता है इसलिए वह Harmful effect adaptation में भी जारी रहता है और फिर एक स्टेज आती है, हो सकता है किसी में 3 महीने के बाद किसी को 1 साल के बाद आए, 5 साल के बाद भी आए वह तीसरी स्टेज है। Exhaustion कि व्यक्ति बिल्कुल Exhaust हो जाता है जिससे फिर Collapse हो जाए। जो Physiological प्रक्रिया है अलग-अलग अवयव की, वो भी Exhaust हो जाती है, कैसे? इसको सरल शब्दों में Breakdown कहा| किसका बी.पी. बढ़ गया, किसको डॉयबिटीज हो गया, ये कैसे पता चले? स्ट्रेस तो सबको एक जैसा हो जाता है पर ये बीमारियों अलग-अलग क्यों? तो उसके कुछ कारण बताते हैं- एक तो यह है कि Genetically आपके शरीर के कुछ अवयव (Organs) कमजोर है।

जैसे अगर मेरे माताजी और पिताजी दोनों को डॉयबिटीज है तो मैं उनसे वो डॉयबिटीज के जीन्स Inherit करता हूँ तो मुझे जल्दी डॉयबिटीज हो जायेगी और हार्ट अटैक के जीन्स किसमें है तो स्ट्रेस से तुरन्त ही उसके हार्ट पर असर होगा और कारण ये भी है कि हमारे सबकी गलत लाइफ स्टाइल है, कोई बहुत मीठा खाते हैं, कोई बहुत तली हुई चीजें खाते हैं, कोई बिल्कुल एक्सरसाइज नहीं करते हैं, कोई बहुत सिगरेट पीते है, बहुत तम्बाकू खाते हैं तो ऐसे जो हमारी जीवन शैली है उससे भी कुछ उस पर बुरा असर होना शुरू हो जाता है। जैसे हमारा बैंक बैलेन्स होता है ऐसे शरीर में स्वास्थ्य का बैलेन्स है। यदि आप कोई कमाई नहीं करो, केवल खर्च करते रहो तो भी जब तक हमारा बैंक बैलेन्स है तो कोई तकलीफ नहीं होगी परन्तु जब हमारा बैंक बैलेन्स समाप्त हो जायेगा फिर समस्यायें आयेंगी। तो ऐसे ही हमारे अवयव (Organs) में 2-5 गुना अधिक बैलेन्स रहता है जो स्ट्रेस और जीवन प्रणाली (Life Style) के कारणों से कम हो जाता है और जिस भी अवयव (Organs) में वह बिल्कुल खत्म हो जाता है तो उसके लक्षण (Symptom) शुरू हो जाते हैं। इसलिए अलग-अलग व्यक्तियों को अलग-अलग बीमारियाँ हो जाती है। आप स्ट्रेस को कैसे समझ पाये इसकी कुछ अच्छी रोचक अध्ययन हुई जिससे यह पता पड़ता है। भल विज्ञान की Technical बात है फिर भी सरल शब्दों में बताता हूँ, आप सभी जरूर समझ जायेंगे कि कई लोगों के सामने एक ही जैसी परिस्थिति आये लेकिन सभी को इतनी बीमारियाँ नहीं होती एक तो यह है कि परिस्थिति कितनी भी तनाव वाली हो लेकिन उस परिस्थिति में भी अगर आपके कन्ट्रोल में कुछ है तो कुछ कदम उठाने से वह तनाव कम होता है और आपको उतना स्ट्रेस नहीं होगा यदि परिस्थिति इतनी तनावपूर्ण नहीं हैं, छोटी सी चीज है परन्तु कुछ भी करो वो तनाव आपका कम नहीं होता है तो उसका असर बहुत ज्यादा होगा। तो एक प्रयोग (Experiment) किया गया जिसमें कुछ चूहे लेकर उनको तीन ग्रुप में बाँटा गया और एक स्पेशल मशीन में उनको रखा गया। एक जो ग्रुप था उसको ऐसे ही रखा, कुछ नहीं किया उनको, दूसरा जो ग्रुप था उनको छोटे-छोटे शॉक दिए गये और वो कुछ भी करें, अपने सिर हिलायें या और कुछ करें तो भी वो शॉक मिलते ही थे। पहला शॉक ,सेकण्ड के बाद, दूसरा 5 सेकण्ड के बाद दिया, तीसरा 30 सेकण्ड के बाद, ऐसे छोटे-छोटे शॉक इनको देते ही थे। और जो तीसरा ग्रुप था उसको भी यही शॉक देते थे पर उनके सिर के सामने एक मेटल की प्लेट रखी थी जिससे अगर वो सिर टकरायें तो वो शॉक खत्म हो जायेगा। तो दो-चार बार शॉक दिया तो चूहो को पता चल गया कि यदि ऐसे सिर से लीवर को यहाँ दबायेंगे तो शॉक खत्म हो जायेगा। थोड़ी ही देर में वो समझ गये, उनको भी वही शॉक दिए, उसी समय दिए, लीवर दबाने से शॉक खत्म हो जाता था तो जब ये प्रयोग (Experiment) पूरा किया गया तब देखा गया कि उनमें अल्सर कितना हुआ क्योंकि यह एक प्रकार से स्ट्रेस का लक्षण है। जिनके कन्ट्रोल में परिस्थिति नहीं थी और कुछ भी करें शॉक मिलते ही थे, खत्म नहीं होते थे, उनको सबसे ज्यादा अल्सर था और जो कुछ करने से शॉक खत्म हो जाते थे उनको सबसे कम अल्सर था। यहाँ तक कि जिनको कुछ भी नहीं करते थे सिर्फ पकड़कर रखा था उनको भी अल्सर हुआ। इसलिए लाइफ में भी कहते हैं कि ज्यादा कार्य करो उससे स्ट्रेस नहीं होता हैं लेकिन जब परिस्थिति आपके कन्ट्रोल में नहीं होती और फँस जाने की सम्भावना है कि मैं कुछ भी करूँ तो भी वो टेन्शन रहता है, तो उन लोगों को तनाव ज्यादा होता है।

अब दूसरा एक प्रयोग किया गया, इस प्रयोग में ऐसे ही चूहों के दो ग्रुप लिए गये, और एक ग्रुप को अचानक शॉक दिए गये, और दूसरे ग्रुप को शॉक तो ऐसे ही दिए गये लेकिन उनके लिए ऐसा किया गया कि शॉक देने से पहले उनको एक सिग्नल (Signal) दिया गया एक छोटी सी लाइट है उनके सामने जो Flicker हुई और लाइट Flicker होने के 2-3 सेकण्ड बाद जब शॉक मिला तो कुछ सेकण्ड के बाद चूहे भी समझ गये कि जब भी वो लाल लाइट का सिगनल आता है तब उसके बाद शॉक मिलने वाला है तो वो अपन मांशपेसी को सिथिल करने लगे कि अभी उनको फिर शॉक मिलने वाला है। इस प्रयोग के बाद उनका अध्ययन किया गया तो पाया कि जिनको सिगनल मिलता था, उस ग्रूप में अल्सर कम हुआ और जिनको अचानक बिना सिगनल के शौक मिलते

थे उनको अल्सर ज्यादा हुए। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि हम परिस्थिति का अन्दाज लगा पाते हैं ग्रुप में चूहे समझ पाते थे कि अभी टेन्शन आने वाला है तो इसलिए वो अपने आपको रिलेक्स कर लेते थे| या तो व्यक्ति और कोई अन्य तैयारी कर सकता है। तो अगर जीवन में आने वाली समस्याओं का पूर्व ही आपको अनुमान हो जाता है तो भी टेन्शन कम होता है। और भी एक प्रयोग किया गया कि कुछ करने से से टेंशन कम हो जाये तो भी व्यक्ति को टेन्शन कम होता है। इसमें भी चूहों के लिए Electric Mat बनाई गई, जिसमें एक ग्रुप को शॉक दिया गया और जैसे ही वो कूदकर मैट के दूसरी तरफ गये तो वहाँ पर शॉक नहीं है तो जब मैं उनको शॉक देते थे वो कूदकर दूसरी तरफ चले जाते थे तो फिर उनको शॉक नहीं मिलते थे।

और दूसरे ग्रुप को ऐसा किया गया कि उनको दोनों जगहों पर शॉक मिलती ही थी। तो कुछ भी करते तो भी शॉक मिलता था। तो थोड़ी देर के बाद वो हार गये कि बस शॉक खाते ही रहें सोचने लगे कि अभी तो कुछ होने वाला नहीं है तो लाइफ में यदि कुछ करने से आपका टेन्शन कम हो जाता है तो फिर व्यक्ति कोशिश करता है उसके लिए लेकिन यदि ऐसा होता ही रहे कुछ भी करे वो प्रॉब्लम होता ही रहे तब फिर एक स्टेज आती जब हम निराश हो जाते हैं। नाउम्मीद हो जाते हैं ऐसी स्थिति में कुछ कहते हैं कि पागल बन गऐ जैसे उनको लगा कि कुछ भी हमारे कन्ट्रोल में नहीं हैं। ये करो तो भी शॉक मिलता है, ऐसा करो तो भी शॉक मिलता ही है। इसीलिए यह भी कहते हैं कि जो साइकोलॉजिकल बीमारियाँ है उनका भी यही कारण है। कई बार माँ-बाप बच्चों के साथ ऐसा करते हैं कि एक ही कार्य जब बच्चे करते हैं तब उनको उस कार्य के लिए प्रशंसा मिलती है जैसे यदि माँ-बाप कहते हैं कि फोन आया है तो कह दो कि पिताजी घर में नहीं है। तो बच्चे ने बोल दिया कि पिताजी घर में नहीं है। तो उसको थोड़ा धन्यवाद मिला कि हाँ, तुमने अच्छा किया परन्तु फिर बच्चा सोचता है कि झूठ बोलना अच्छा है। और वो बाहर जाकर कोई थोड़ी सी झूठ बोलता है तो पिताजी उसको डॉट देते हैं कहते हैं कि क्यों झूठ बोलता है। और ऐसा अगर बार-बार होता है। अनुमानित नहीं रहता है और कब डॉट मिलेगी। तो वो एक कन्फ्यूजन पैदा हो जाता है। और ऐसे गम्भीर कन्फ्यूजन होने से कब प्रसंशा मिलेगी प्रॉब्लम नर्वस ब्रेकडाउन या साइकोशिस भी हो सकता है। परिस्थिति एकदम से तनाव पैदा नहीं करती है। लेकिन जब आप उस बात को रिपीट करते हैं कि इसने ऐसा क्यों कहा? ऐसा नहीं कहना चाहिए, ऐसे आप 100 बार, 500 वार, 1000 बार सारे दिन में उसी बात को रिपीट करते हैं तो जो पुनरावृत्ति है वो स्ट्रेस निर्माण करती है। यदि हम कुछ ऐसे कदम उठायें कि वो मन के अन्दर पुनरावृत्ति रूक जाए तो भी वास्तव में टेन्शन नहीं होता है। इसीलिए हमें कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए कि यह जो दोहराना है वो खत्म हो जाए।

 (1) स्ट्रेस को अच्छी तरह से समझने के लिए यह बात समझना आवश्यक है कि परिस्थिति तनावपूर्ण नहीं होती है।” आमतौर पर व्यक्ति परिस्थिति को ही दोषी समझता है। Introductory Lecture में भी बताया था कि 81 प्रतिशत लोग परिस्थिति को दोषी मानते हैं, औरों को दोषी समझते हैं परन्तु कुछ उदाहरणों के द्वारा हम देखेंगे कि सच पूछो तो जो परिस्थिति हैं वो तनावपूर्ण नहीं है। दो महिलायें थी, दोनों को हॉर्ट अटैक आया था और उनको अस्पताल में भर्ती किया गया था, दोनों महिलाओं को एक जैसा ही समाचार मिला, जो परिस्थिति आई वो Stressful परिस्थिति भी एक जैसी ही उनके सामने आई, उन दोनों को यह खबर मिली की उनके पति ने उनको तलाक देने के लिए कोर्ट में अर्जी दी हुई है, जब यह खबर महिला को मिली तो उसको हॉर्ट अटैक आया और उसके फलस्वरूप उसका देहान्त हो गया। और जब यही खबर दूसरी महिला को मिली तब उसको बहुत खुशी हुई कि अभी दुःखी असंतुष्ट विवाहित जीवन से मुक्ति मिल गई। तो परिस्थिति एक जैसी थी परन्तु उनकी प्रतिक्रियायें बिल्कुल ही भिन्न थीं।

ऐसे ही अमेरिका में दो बिजनेसमैन थे, दोनों की पत्नियाँ किसके साथ भाग गई तो एक तो बहुत निराश हुआ, बहुत Depressed हुआ और उसको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, परन्तु जो दूसरा बिजनेसमैन था वह बिल्कुल

स्वस्थ्य था, वह दूसरे दिन बहुत तेज से गाड़ी चला रहा था उसने गाड़ी के आइने में देखा कि ट्रैफिक पुलिस की वैन(वाहन) उसका पीछा कर रही है तो उसने अपने गाड़ी की गति को और अधिक बढ़ा दिया परन्तु ट्रैफिक पुलिस तो होशियार होती है तो कैसे भी करके उसने उसको ओवरटेक किया और रोक लिया। पूछा की आज रविवार है अगर तू मुझे एक सही कारण बता देगा कि इतनी तेज गति से गाड़ी क्यों चला रहा था तो तुझको छोड़ दूंगा, उसने सोचकर कहा कि आप पूछ रहे हैं तो मैं आपको सत्य कारण ही बताऊँगा कि मेरी पत्नी कल ही ट्रैफिक पुलिस के साथ भाग गई है, जब मैंने देखा कि आप मेरा पीछा कर रहे हैं तो मैंने सोचा कि आप उसको वापिस ला रहे हैं, उससे बचने के लिए मैंने गाड़ी की स्पीड तेज कर दिया था।

एक और उदाहरण भी हम दे सकते हैं- मुम्बई में दो भाई रहते थे जिसमें एक भाई बहुत पैसे वाला था, दूसरा भाई गरीब था, आप कभी मुम्बई गये होंगे तो जानते ही होंगे कि वह एक ऐसा शहर है कि जहाँ पर बहुमंजिल इमारतें होती है और उसके बाजू (साइड) में छोटी सी चाल है, तो जो गरीब भाई था वह चाल में रहता था और जो पैसे वाला था वह टावर में रहता था, उस गरीब भाई के तीन बच्चे थे और गरीबी के प्रति तीनों की प्रतिक्रियायें अलग-अलग थी तो सबसे बड़ा था वह तो बहुत गुस्सा करता था कि यदि तुम हमें पाल नहीं सकते हो अच्छा कपड़े नहीं दे सकते हो तो हमें जन्म ही क्यों दिया वह बार-बार अपने पिताजी से लड़ता था। जो सबसे छोटा था वह अपने को हीन समझता था कि मेरे पास तो अच्छे कपड़े भी पहनने को नहीं है वो हीनता का भाव उसमें रहता था और वह पढ़ नहीं पाया जो बीच वाला था वह रात दिन पढ़ता था। छुट्टिया में जब उसके कजिन्स ब्रदर्स घूमने को जाते थे, पिकनिक पर जाते थे, तब भी वह पढ़ता था और अन्त में वह बहुत बड़ा सर्जन बना। जब उसे बड़ी कॉन्फ्रेन्स में अवार्ड मिल रहा था क्योंकि जब अवार्ड मिलता है तो यह व्यक्ति भी अपनी कुछ बात बताता है तो उसने अपनी बात सुनाते हुए कहा कि मुझको जो आज अवार्ड मिला है उसका राज यह है कि ‘गरीब माँ-बाप के घर में जन्म हुआ। यदि मेरे माँ-बाप पैसे वाले होते तो मैं भी नहीं पढ़ता क्योंकि मुझको भी घूमने का शौक हो सकता था। तो ऐसी गरीबी वो भी स्ट्रेस है तो गरीबी के प्रति तीनों की प्रतिक्रिया भिन्न है जो दिखाती है कि परिस्थिति स्ट्रेसफुल नहीं लेकिन वो आप की अप्रोच ही है जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

(2) इस पर मैं थोड़ा अधिक समय ले रहा हूँ क्योंकि यह महत्वपूर्ण बात है कि यदि आप इससे संतुष्ट हो जाये तो जो आप का दृष्टिकोण है जीवन के प्रति, वो भी बदल जायेगा। हमने आपके सामने दो तथ्य रखे हैं। 1. Thoughts Lead to feeling. 2. Thoughts are under our control. पहली बात है कि जो भी फीलिंग हमें होती है, उन सभी फीलिंग का जो मूल आधार है, वो आधार हमारा विचार है कि कुछ भी हो आप Nervous हुए तो जाग्रत या सुसुप्त रूप से आपमें कुछ विचार था। जिस विचार के कारण आप Depressed हुए, हो सकता है जाग्रत न हों, आपने सुषुप्त रूप से उसके बारे में सोचा हो तो यह पहला सत्य है कि जो भी हमारे मन की स्थिति होती है उसका आधार हमारे विचार हैं और फिर दूसरा फैक्ट है कि जैसे हाथ को नीचे ऊपर करना आपके कन्ट्रोल में है, मैं चाहूँ तो अपने हाथ को आधे घंटे तक ऊपर रख सकता हूँ, ऐसे ही कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो, मान लो व्यक्ति बहुत बीमार है सारे शरीर में पट्टी बँधी हुई है, अस्पताल में है और वो सोचता है कि “I am feeling great ” I am feeling great ” मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे विचार हमारे नियन्त्रण में हैं, कैसी भी समस्या हो हम सोच सकते हैं कि “I am feeling great ” मैं शान्त हूँ, जो भी होगा वो अच्छा होगा, जीवन में जो भी बात आयेगी तो अच्छा ही होगा। मैं शान्त हूँ, मुझे जरूर सफलता मिलेगी, उससे भी कुछ सीखने को मिलेगा, तो ऐसे आप 50 बार, 100 बार, 500 बार Repeat करेंगे, ये तो आपके कन्ट्रोल में है तो ये Fact No.2 है कि यद्यपि Feeling आपके Control में नहीं है, लेकिन विचार आपके कन्ट्रोल में है, हो सकता है कुछ घटना हो जाय और आपको ऐसा Feel हो, लेकिन विचार आपके कन्ट्रोल में है। तो पहला तथ्य है कि “ विचार भावनाओं  का नेतृत्व करते है ” या ” Thoughts lead to feeling ” और दूसरा तथ्य है कि ” Thoughts under our control ” या विचार आपके नियन्त्रण में है। अब इन दोनों को गणित के अनुसार मिला दीजिए तो परिणाम क्या होगा? इसका अर्थ यह हुआ कि Feeling भी हमारे कन्ट्रोल में है तो इसलिए अब आप कभी ये नहीं कहना कि ऐसा हुआ तो मैं Depressed हो गया, उसने ये कहा तो मैं Upset हो गया, इसने मुझे ये चान्स नहीं दिया तो मैं नर्वस हो गया, मुझे नींद नहीं आई, लेकिन विचार आपके कन्ट्रोल में है, कम से कम आप ये कहें कि मुझे Depression के विचार आ रहे हैं, इस प्रकार से आप सोच रहे हैं। और जब आप इस प्रकार से सोचेंगे तो अवश्य ही आप अपने विचारों को बदल भी सकेंगे। वास्तव में आप स्वयं ही अपनी मनः स्थिति के लिए जिम्मेवार हैं और वास्तव में आप सोच भी नहीं रहे हैं। Fault आपके विचारों में भी नहीं है, यह तो और ही गहरी लेबल पर होती है और ये मैं सिद्ध भी कर सकता हूँ| जेसे अगर आपको कुत्तों से डर लगता है, आप एक कल्पना करें, एक परिस्थिति को सोचें कि आप कहीं पर बैठे हैं, बहुत बिजी हैं और अचानक आपके सामने Artificial कुत्ता ला दिया जाये, एकदम रीयल लगता हो तो क्या होगा? डर लगेगा? जरूर डर लगेगा, क्यों? क्योंकि आपने सोचा भी नहीं सोचते होते तो फिर ये न सोचते न कि ये तो Artificial कुत्ता है, परन्तु आपने सोचा नहीं, Fault आपकी Consciousness में होती है जिसके कारण आपको तुरन्त (Immediately) डर लगता है।

एक और भी परिस्थिति ले सकते हैं कि एक लकड़ी का टुकड़ा करीब एक फिट चौड़ा और बीस फिट लम्बा हो, ऐसा मैं जमीन पर रख दूँ और फिर आपको कहूँ कि इसके ऊपर आप चलिए तो आप चल सकेंगे? उसके ऊपर ही चलना है, गिरना नहीं है, क्या होगा? चल सकते हैं, मुश्किल नहीं है। अभी दो करीब-करीब इमारतें है 4 मंजिल ऊँची और उसके ऊपर लकड़ी के टुकड़े को रखें और आपको कहें कि इसके ऊपर चलें  तो क्या आप चलेंगे? नहीं चल सकेंगे,  क्युकी आपकी Consciousness में डर है गिरने का तो उसके कारण आप उसके ऊपर नहीं चल सकते। इसलिए सत्य तो यह है कि जब भी आपको स्ट्रेस आती है, जब भी टेन्शन आता है, तो जैसे बीमारी की इनफेक्शन का रूप है तो भी गहराई में जाकर पता पड़ता है कि कारण तो कुछ और ही है तो ऐसे ही स्ट्रेस के लिए जो मूल कारण है वो आपकी Consciousness में है और उस Defect को हमें ठीक करना है और वो Defect यदि ठीक हो जाय तभी आप स्ट्रेस से दूर हो सकते हैं। अब स्ट्रेस को कैसे दूर किया जाए उसके 18 प्वॉइण्ट बताए गए हैं, उसमें से कुछ Important आपको बता रहे हैं |

पहला प्वॉइण्ट है कि तनाव एक संदेशवाहक है, वो कोई दुश्मन नहीं है, वह कुछ संदेश को ले करके आपके पास आया है इसलिए इस संदेश को सुनो, उस संदेश को समझो, ऐसा नहीं की कोई संदेश ले करके आया, आप उसको साइड में रख देते हैं, जब भी थोड़ा भी टेन्शन होता है, आप दुखी होते हैं तो वहाँ कुछ बात तो है, वो कुछ कहने के लिए आया है, सिरदर्द हो रहा है, कमर में दर्द हो रहा है, दिल की धड़कन बढ़ गई या आप निराश हो गए, भयभीत (Nervous) हो गए, उस संदेश को सुनिए की वास्तव में क्या संदेश है? उसके द्वारा कुछ आप सीखो कि किसी की प्रशंसा होती है तो मैं निराश होता हूँ या तो मेरा नाम नहीं होता है तो मैं निराश होता हैं, आपका मन खुला होगा तो आपको पता चलेगा, हर एक व्यक्ति कि अलग परिस्थिति होती है और अगर आप उसको सुनते हैं, उससे सीखते हैं, तो फिर आप उससे दूर भी नहीं भागेंगे। भल हम तनाव को कन्ट्रोल भी नहीं करते परन्तु कभी आ जाये तो आप उससे दुखी नहीं होंगे, आपको होगा कि इससे तो मैं आगे बढूँगा, मैं जीवन में कुछ सीखूँगा, सम्पूर्णता (Perfection) के नजदीक आ जाऊँगा।

एक बात है कि स्ट्रेस डरावना नहीं है, उससे डरो नहीं, लेकिन आपको क्या करना चाहिए? आपको स्ट्रेस को Meet करना चाहिए, Greet करना चाहिए और Beat करना चाहिए तो सबसे पहले तो उसको Accept करो कि हाँ! ये परिस्थिति है जैसे कि दोस्त से मिलते हैं फिर उसको Greet करिए कि मैं इसे चुनौती (Challenge) के रूप में लूँगा, मैं वह करूंगा जो मेरे कन्ट्रोल में है और यदि आप इस प्रकार से करते रहेंगे अन्त में स्ट्रेस को Beat कर पायेंगे पराजित कर पायेंगे, यह हमारी Approach होना चाहिए। काफी तनाव हमारे जीवन में आते हैं वो इसलिए आते हैं क्योंकि हम भूतकाल के बारे में सोच-सोचकर दुखी (Disturb ) होते है | भूतकाल में जो हमने गलतियां की है उनके बारे में सोचकर व्यक्ति पाप का अहसास (Guilt) करता है कि मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है, ऐसा मुझे नहीं करना चाहिए था और कुछ हमारे टेन्शन जो है वो भविष्य के है कि आगे क्या है? भविष्य में क्या होगा? कैसे होगा तो ये सोचकर भी हम दुखी होते हैं या तो भविष्य का हमको डर लगता है, भविष्य की हम चिन्ता करते हैं तो ये दोनों भूतकाल और भविष्य का टेन्शन है। उससे मुक्ति प्राप्त करने का एक बहुत अच्छा तरीका है कि आप अपने आपको बताइए कि पास्ट तो जा चुका, भूतकाल अर्थात मर चुका है और भविष्य का तो अभी तक जन्म ही नहीं हुआ है तो उसके बारे में क्यों चिन्ता करें। कहते हैं Past Cancelled Cheque की तरह है, यदि Cheque Cancelled हो जाये तो पैसे नहीं मिल सकते है और Future एक Promissory note की तरह है| मान लीजिए मैंने एक व्यक्ति को लिखकर दे दिया कि मैं तुमको पाँच लाख रूपये दूंगा और नहीं दूँ तो भी वो क्या कर सकेगा? तो भविष्य ऐसा है लेकिन Present moment जो वर्तमान क्षण है वो नकद (कैश) है जिसका आप उपयोग कर सकते हैं। और एक अच्छी बात है कि Past is history, जो भूतकाल में है वो इतिहास है| And future is mystery कि भविष्य एक पहेली हैं, लेकिन वर्तमान एक सौगात (तोहफा) है। इसलिए सदैव वर्तमान में जियें, और इस सौगात का सदुपयोग करें, आज के दिन को अच्छा बनाइये और सचमुच कोशिश करिए कि आज के दिन को मुझे अच्छा बनाना है, तो सचमुच अच्छाई जरूर मिलेगी और दिन प्रतिदिन हमारी प्रगति होती जायेगी।

जिन पॉइंट्स के बारे में हमने आपको बताया उसको आप ऐसी जगह पर रखें कि प्रतिदिन आप इसको पढ़ सकें। और इसको पढ़ने में आपको सिर्फ तीन मिनट लगते हैं इसलिए रोज की ये एक आदत डालें कि इन  पॉइंट्स को मुझे एक बार पढ़ लेना है और पहले दिन पहला प्वाइण्ट याद रखें, दूसरे दिन पहला और दूसरा याद रखें, फिर तीन, चार ये कोशिश रखो कि एक मास में ये सब पॉइंट्स आपको पूरा याद हो जाये, और कुछ नहीं करो जब भी टेन्शन आये तो आप ये सोचिए कि इन सब पॉइंट्स में से कौन सा अमल करने जैसा है। सिर्फ उसको रिपीट कीजिए, हो सकता है दो प्वाइण्ट आपके लिए आवश्यक हो, उसको आप प्रैक्टिकल में अपनाइए और सचमुच देखिए कि क्या असर होता है|

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