Managing powers of thoughts

विचार शक्ति का प्रबन्धन

सारे दिन में आप कितने विचार करते हैं? व्यक्ति सारे दिन में लगभग 30 से 50 हजार विचार करता है इसलिए विचारों को मैनेज करना बहुत ही जरूरी है। हम सिर्फ एक विषय पर ही नहीं सोचते पर कई पर एक साथ सोच रहे होते हैं जैसे दो समान्तर पटरियों पर अलग-अलग ट्रेनें जाती है इस प्रकार से ही हमारे विचार भी एक साथ चलते है और क्योंकि प्रत्येक विचार शरीर के कितने सेल्स (Cells) पर प्रभाव डालता है? 75 ट्रिलियन (Cells) पर प्रभाव डालता है इसलिए भी जरूरी है कि हमारे विचार सदैव ऐसे हो कि उनका प्रभाव निगेटिव (नकारात्मक) न हो क्योंकि अगर विचार निगेटिव होंगे तो उसके प्रभाव भी जरूर निगेटिव होगा।

विचारों को हम जितना भी मैनेज करें, उतना ही अच्छा है। इसके लिए ये जानना है कि हमें कितने प्रकार के विचार आते हैं, उससे ये फायदा होगा कि कौन से विचारों को मुझे बढ़ावा देना है। उससे हम उसका फर्क समझ सकेंगे और वो फर्क समझ में आएगा तो प्रैक्टिकल में हमें विचारों को मैनेज करना और भी सहज होगा और अलग-अलग रूप से विचारों को विभाजित (Classify) कर सकते हैं, जितने हमने यहाँ किए हैं उससे भी उसे 8 बातों में Classify किया है कि कुल मिला करके हम 8 प्रकार के विचार करते हैं, उसे थोड़ा समझ लें कि ये 8 प्रकार के विचार कौन-कौन से हैं और कैसे इन्हें अच्छी तरह से मैंनेज करें।

1. जहरीले विचार (Toxic Thoughts) कि जो सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं और इन विचारों को हमें कम से कम करने की कोशिश करनी चाहिए, ये जहरीले विचार कौन से हैं? “ जो विचार क्रोध, द्वेष, घृणा, भय बदले की भावना आदि से जुड़े हुए हैं, वो जहरीले विचार हैं। इससे कुछ जहरीले रसायन हमारे खून में काफी अधिक मात्रा में आ जाते हैं। ये सबसे खतरनाक प्रकार के विचार होते हैं इसके कारण हमको अनेकानेक बीमॉरियों हो सकती है और हर व्यक्ति को चाहिए कि इसको तो हम जीरो कर दें। किसी भी हालत में हमें जहरीले विचार आयें ही नहीं और यदि एक बार भी हमें जहरीले विचार आया तो हमको उसे परिवर्तन (Transfer) करने की कोशिश करनी चाहिए। ये भी हम देखेंगे कि किस प्रकार से विचारों को मैनेज ( Thought Management) के लिए हम विचारों को परिवर्तित (Change) करें।

2. दूसरे हैं नकारात्मक विचार, इसमें फर्क है कि विषैले तो सचमुच बहुत ही खतरनाक होते हैं लेकिन नकारात्मक विचार भी नुकसान कारक है परन्तु नकारात्मक विचार का मन पर असर होता है। पर इतनी ज्यादा  मात्रा में विषैले रसायन स्रावित नहीं होते हैं, वो कम मात्रा में होते हैं फिर भी उसे भी हमें दूर करने की जरूर कोशिश करनी चाहिए। जो विचार किसी घटना के घटित होने पर, उससे होने वाली हानि और उसमें व्यक्ति द्वारा महसूस किए जाने वाले नुकसान से जुड़े होते हैं वो नकारात्मक विचार हैं। ये विचार भी कुछ हद तक वैषिले रसायनों की मात्रा को बढ़ाते हैं और इस प्रकार से व्यक्ति कई बार जिसको भी यह आदत होती है या उनका ऐसा व्यक्तित्व है वह सब कुछ होते हुए भी नकारात्मक सोचता है। शेयर मार्केटिंग में एक बिजनेसमैन थे वे एक दिन जब घर आए तो वे बहुत निराश होकर बैठे हुए थे। कुछ देर तो उनकी पत्नी ने कुछ नहीं कहा परन्तु थोड़ी देर के बाद उसने पूछा क्या बात है? आज आप इतने नर्वस क्यों दिखाई देते हैं तो वे कुछ नहीं बोले। फिर दो-चार बार उनसे पूछा तब कहा कि क्या बताऊँ आज मुझे बड़ा घाटा पड़ गया है। जब मैं शेयर बाजार में गया तब मेरा पूरा प्लान था कि मुझे 5 लाख का फायदा होगा। तो इतना नुकसान हुआ कि 3 लाख रूपए का ही फायदा हुआ तो दो लाख का नुकसान हो गया ये भी निगेटिव विचार है कि व्यक्ति को लाभ हुए हैं जीवन में 3 लाख का एक दिन में फायदा हुआ लेकिन फिर भी वह नहीं दिखाई दिया ये दिखाई दिया कि जो अन्दाजा लगाया था कि मुझे 5 लाख का फायदा होने वाला है। उसके बदले मुझे 3 लाख का ही फायदा हुआ। तो यह सोच करके व्यक्ति निराश होता है। ऐसे ही नकारात्मक विचार वो भी है। मैं नहीं कर सका मैं कमजोर हूँ। या तो भल मैं अच्छा हूँ लेकिन दूसरे से नीचा हूँ। इस प्रकार जो हीनता के विचार हैं वो वास्तव में नकारात्मक विचार हैं। मार्कस एरेलियस जो बहुत ही नामी तत्व चिंतक हो करके गये उन्होंने कहा कि Your life is what your thoughts make out of it आपका जीवन वैसा ही है जैसा विचार हम बनाते हैं। इसीलिए ही नकारात्मक विचार, असफलता के विचार, मैं नहीं कर करूँगा, मेरे में ये क्षमता नहीं हैं, आदि है क्योंकि हमारे में जितना हम जानते है उससे कहीं बहुत ज्यादा क्षमता है और कई बातों से कई उदाहरणों से भी यह सिद्ध कर सकते हैं।

एक माता अपने छोटे बच्चे के साथ जा रही थी और अचानक वह बच्चा गाड़ी के नीचे फ़स गया और उसका वापस आना मुश्किल हो गया। वो खेल रहा था और खेलते-खेलते उसमें फँस गया तो ये जिन्दगी और मौत का सवाल था। तो माता में, जो बिल्कुल असम्भव था, उसमें इतनी शक्ति आ गई कि उसने अपने हाथों से इतनी भारी गाड़ी को उठा लिया कि बच्चा बाहर निकल आये। इससे पता चलता है कि हमारे अन्दर बहुत विशाल क्षमता है। जो हम मानते हैं उससे कई गुना ज्यादा पॉवर है। इसीलिए समझे कि मैं कर सकता हूँ, मुझमें यह कार्य करने की क्षमता है, मैं अपनी पूरी शक्ति कार्य में लगाऊँगा। ऐसे जितने ही हमारे सकारात्मक विचार बढ़ते जायेंगे, उतना ही हमारे जीवन में सफलता ज्यादा होगी, स्ट्रेस भी कम हो सकेगा, इस प्रकार हम नकारात्मक विचारों से मुक्त रहने की कोशिश करें। Low Self Esteem के जो नकारात्मक विचार होते हैं, उसे दूर करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है, इस बात को याद रखिए कि I may be inferior to you in some ways but this in no way means that I need to feel inferior. हो सकता है कि मैं आपसे कुछ बातों में कमज़ोर हूँ लेकिन इसका मतलब यह कदाचित् नहीं है कि मुझे अपने को कमजोर महसूस करने की जरूरत है “ये सदा याद रखिए कि हो सकता है किसी व्यक्ति से कुछ बातों में मैं Inferior हूँ जैसे मेरी हाइट कम है या तो मेरी पर्सनॉलिटी इतनी अच्छी नहीं है, मेरी इनकम उस व्यक्ति से कम है, मेरी आवाज उस व्यक्ति की तुलना में इतनी अच्छी नहीं है, ऐसे कई बातों में सम्भव हो सकता है कि मैं दूसरे व्यक्ति से कम हूँ। परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि मैं अपने आपको इतना कमजोर महसूस करूँ। ये कहा जाता है। ” There is a difference in being inferior and feeling inferior ” समझने में और Inferior होने में बहुत फर्क है। भल मैं कुछ बातों में किसी से कम हूँ लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मैं उसको महसूस भी करूँ क्योंकि कुछ बातों में उससे अच्छा भी हूँ, और कहीं अगर हम दूसरे Aspect को देखें तो उस व्यक्ति से मेरे में क्षमता ज्यादा है, ज्यादा फायदे हैं, उन पहलुओं को भी मैं सोचूँ तो भी मुझे Inferiority की फीलिंग नहीं होगी, अपने बारे में हम अच्छा महसूस करें, स्वमान हमारा अच्छा हो, इसके लिए कहते हैं कि कोई भी बाहरी चीज़ की आवश्यकता नहीं है यानि  भले कोई आपकी प्रशंसा न भी करे तो भी आपका स्वमान अच्छा हो सकता है, आपको अपना स्वमान (Self- Worth) रखना चाहिए और जितनी आपमें स्वमान (Self- Worth) होगा, जितना Self Esteem होगी, उतना ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है। जिग जिंगलर, जो अमेरिका के शायद सबसे महत्वपूर्ण Sales Trainer होंगे, वैसे तो पहले Sales Man थे और अभी आगे बढ़ते-बढ़ते वो Sales Man को ट्रेन करते हैं और उनकी एक बहुत अच्छी किताब है ” See yourself on the top ” कि अपने आपको आप सबसे ऊँचाई पर (Top) देखिए, उन्होंने अपना बहुत ही अच्छा अनुभव बताया है कि जब उन्होंने Salesman के रूप में कार्य किया तो काफी समय तक वो बहुत फेल रहे। अपेक्षा से थोड़ा भी अधिक वे सेल (बिकी) नहीं कर पाते थे और उसके कारण काफी हताश भी थे कि मुझमें कोई क्षमता नहीं है, मैं अच्छा सेल्समैन नहीं बन सकता है। सिर्फ एक छोटी घटना उनके जीवन में हुई जिसके कारण उनमें सारा परिवर्तन आ गया और यह यूनाइटेड स्टेट के टापर गए, सबसे ज्यादा बिक्री करने वाले सेल्समैन बन गए और वह घटना सिर्फ 2-3 मिनट में हुई थी। एक बार उनके सीनियर मैनेजर थे, वह उनसे मिले और उस सीनियर मैनेजर ने युवा जिंग जिंगलर से कहा कि तुम्हारे में तो बेशुमार शक्ति (Potential) है, और एक दो बातें इस प्रकार की उससे कहीं और चले गए, और ये जो छोटी सी टिप्पणी (Remark) से, उन्होंने स्वयं अपनी इस किताब में कहा कि मेरे में एक महान परिवर्तन आ गया और कहा कि पहले मैं जैसा था वैसा ही रहा, मैंने कोई विशेष शिक्षा नहीं ली, बिक्री करने की कोई विशेष पद्धति भी सीखी, परन्तु इस टिप्पणी (Remark) से मेरे स्वमान (Self – Esteem) में सुधार हो गया, मेरे में यह बात घर कर गई कि सचमुच मेरे बॉस ने कहा है कि मैं सबसे अच्छा सेल्समैन बन सकता हूँ, उससे जो मेरे मन में अनेक बार विचार चले और यह स्वमान का परिवर्तन हो मैं अपने आप में इतना बड़ा परिवर्तन ला सका तो इसलिए कभी भी नकारात्मक विचार न करें। अगर इस प्रकार का एक निराश विक्रेता (Failed Salesman) इतना Top का Sales Trainer बन सकता है। तो हमारे में से प्रत्येक व्यक्ति उससे भी ज्यादा बहुत कुछ हॉसिल कर सकता है। ऐसे ही एक 15 वर्ष के लड़के को उनके टीचर ने कहा कि मैं देख रहा हूँ, तुम्हारी बौद्धिक क्षमता (IQ.) बहुत कम है और तुम S.S.C. भी पूरा नहीं कर सकोगे तो इस बात को ले करके उस बच्चे ने पढ़ाई छोड़ दी और करीब 17 वर्ष वह दूसरे छोटे-छोटे कार्य करता रहा। कहीं होटल में वेटर का काम किया, कहीं छोटी-छोटी चीजें बेचता रहा और जब वह 32 वर्ष का हुआ तब अचानक ही उसकी बौद्धिक क्षमता (I.Q.) का परीक्षण लिया गया, तो उसकी बौद्धिक क्षमता (I.Q.) 155 थी जो कि बहुत ज्यादा है, इत्तफाक किसी की इतनी अधिक बौद्धिक क्षमता (IQ) होती है, बस इस जानकारी से ही उसके जीवन में महान परिवर्तन आ गया, वो कोई स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं गया परन्तु इससे जो उसका स्वमान बढ़ा जिससे वो अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने लगा और बड़े-बड़े कार्य करने लगा, पहले वो छोटे-छोटे कार्य करता था। आखिर में उसने कई किताबें भी लिखीं | एक Society है International Association of Mansa जिसका मेम्बर बनने की एक ही आवश्यकता है कि आपकी बौद्धिक क्षमता (IQ) 140 से ज्यादा होनी चाहिए, वही एक योग्यता जरूरी है तो वो उसका मेम्बर भी बना और अध्यक्ष (चेयरपर्सन) भी बन गया। तो ये भी एक उदाहरण है कि कैसे जब व्यक्ति का स्वमान बढ़ता है, उसे सिर्फ ये जानकारी मिली की मेरे में इतनी क्षमता है तो इस जानकारी से ही उसके जीवन में इतना महान परिवर्तन आ गया। इस प्रकार से हम सभी यदि निगेटिव विचार को समाप्त करने लगे, हीनता के विचारों को यदि अपने जीवन से निकाल दें तो उसके द्वारा भी एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ सकता है और इसे भी हमको पहचानना चाहिए, सारे दिन में ये बात भी हम सोचें कि मुझे कौन से निगेटिव विचार आ रहे हैं इस पर भी हम अन्त में, जब सारे ही विचार समझ जायेंगे फिर इस विषय पर चर्चा करेंगे।

3. तीसरे हैं अनावश्यक विचार (Waste Thoughts) अनावश्यक विचार हो सकता है, कि निगेटिव विचार न हो पर इन विचारों में कोई Productive बात भी नहीं होती| बड़े शहरों में यात्रा करते समय जैसे मुम्बई की ट्रेन में  जाते समय अक्सर लोग अख़बार पड़ते हैं जिसमे बहुत सारी विज्ञापन होती है, ये अध्ययन किया गया कि लोग एक विज्ञापन को 15 बार पढ़ते हैं। यदि आधा घण्टे ट्रेन में यात्रा करते हैं तो वो एक ही विज्ञापन को 15 बार पढ़ते हैं और वो बार-बार पढ़ने से भी उन पर उसका असर हो जाता है। ये भी फालतू विचार होता है। अन्त में आप इस चीज को खरीद ही लेंगे। दूसरा उदहारण ये है कि कभी कभी ऐसे ही अनावश्यक बैठकर हम कुछ भी गपशप करते हैं। जिसका कोई विषय नहीं होता है, कई बार उससे कोई बात आप नई सीखते नहीं हैं, न ही आपको कोई फायदा होता है, न ही सामने वाले को कोई फायदा होता है तो वह भी अनावश्यक विचार है। जैसे लेक्चर्स सुनते-सुनते भी कोई और विचार कर रहे हैं, वह भी वास्तव में फालतू विचार है और इनको हो सकता है हम पूरी तरह दूर न कर पाये, परन्तु फिर भी अटेन्शन रख करके जितना उन विचारों को कम करेंगे उतना ही जो सम्पूर्ण विचारों का मैनेजमेन्ट होना चाहिए, वह हो पायेगा | जो विचार किसी आवश्यक कार्य से या कुछ रचनात्मक (Productive) कार्य से नहीं जुड़े होते हैं, तो अनावश्यक विचार हैं। ये विचार भल विषेले रसायन न भी स्त्रावित करें फिर भी समय और शक्ति को नष्ट करते है।

4. आवश्यक विचार (Necessary Thoughts)- जो विचार आवश्यक गतिविधियों और नित्य कर्मों से जुड़े होते है, वो आवश्यक विचार है। इनको पूर्ण रूप से दूर नहीं किया जा सकता। फिर भी यदि हम इन गतिविधियों के बारे में कम सोचते हैं, तो हमारी शक्तियों की बचत होती है। आवश्यक विचार क्या है? जो हमारी रोज की आवश्यक गतिविधियों के बारे में जो हम सोचते हैं, वो आवश्यक विचार हैं। उनको हम पूरी तरह से शायद हम खत्म नहीं कर सकते हैं लेकिन फिर भी ऐसी बातों के बारे में जितना आप कम सोचेंगे तो आप ऊर्जा की बचत कर सकेंगे। क्योंकि जो प्रत्येक विचार निर्माण होता है, वह हमारी जो Psychical Energy होती है ,यह ऊर्जा उसमें उपयोग होती है। ऊर्जा कम खर्च हो उतना ही वास्तव में अच्छा है, जितनी आप उसको बचायेंगे, जिससे की सारे दिन के कार्य के बाद भी वो शक्ति आपके पास जमा रहेगी, इससे आप कुछ रचनात्मक (Creative) सोच सकेंगे | भल कोई कार्य करने का आपको आवश्यक विचार आता है ,जैसे आपको स्नान करना है या तो आपको भोजन करना है, और कोई कार्य है वो कार्य को आप जरूर करिए परन्तु उसके विषय में आपको ज्यादा साचने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह करें कि उस कार्य को हम जाग्रति (Awareness) के साथ करें ताकि एक तो आप उससे अधिक से अधिक आनन्द प्राप्त कर सकें, जैसे आप भोजन भी करते हैं तो भोजन करने के बाद आपको संतुष्टता (Satisfaction) महसूस होती है। आमतौर पर व्यक्ति क्या करता है? जाग्रति Awareness से वह Activity नहीं करता है, जिसके कारण कई बार वह बहुत ज्यादा खा लेते हैं, फिर भी मन संतुष्ट नहीं होता। एक बहुत ही अच्छी किताब है ” Drinking Tea and Living Life ” | जब मैंने पहली बार इस किताब का Title पढ़ा तो बड़ा आश्यर्च हुआ कि ये क्या सम्बन्ध होगा कि चाय पिओ और जीवन जिओ परन्तु जब पढ़ा तो लगा कि सचमुच बहुत अच्छी किताब है, इसमें उसने यही बात कही है कि जो भी आप Activity करते हैं, जाग्रति (Awareness) के साथ करें, चाय भी पीते हैं तो ऐसे नहीं कि चाय आई आपने सीधी पी ली, परन्तु उन्होंने अच्छी तरह वर्णन किया है कि चाय भी आती है तो हम शान्ति से देखें, उसके कलर को देखें, उसकी खूशबू को अनुभव करो अच्छे से, पुनः धीरे-धीरे चाय पिओ ताकि कम चाय में भी आपको पूरा आनन्द मिले। इस प्रकार से यदि भोजन भी कर रहे हों, तो भी रिलेक्स होकर आराम से उसको फील करके करें तो कम भोजन में भी आपको संतुष्टता होगी और सोचने की भी आवश्यकता नहीं। मैं आपको अन्त में यह भी बताऊँगा कि हमें विचारों के निर्माण (Origin) को भी जानना चाहिए। वह भी हमारे लिए बहुत उपयोगी होगा, तो इसलिए भी लक्ष्य रखा जाए कि जितने भी आवश्यक कर्म हों आप हर कर्म को जाग्रति (Awareness) के साथ कीजिए।

5. सकारात्मक विचारों के बारे में वास्तव में बहुत कुछ लिखा गया है, बहुत कुछ बहुत कम लोग जानते हैं कि सकारात्मक विचार क्या है?  क्या कदम उठाए जाए कि जिससे हम सकारात्मक विचार का निर्माण (Generate) कर सकें। “जो विचार सफलता, स्वास्थ्य, शान्ति, आत्मअभिमान और किसी घटना के परोक्ष या अपरोक्ष लाभ से जुड़े होते हैं, वो सकारात्मक विचार हैं ” कैसे सचमुच हम Positive सोचें, कुछ आपको वास्तविक राय देना चाहूंगा जिनको अपना करके आप सचमुच जीवन में सकारात्मक सोच पायेंगे। जीवन में आप आज जहाँ भी हो, जो कुछ भी आपने अपने जीवन में प्राप्त किया है या आपको जीवन में कुछ हॉनियाँ हुई हैं, कुछ समस्यायें आपके सामने आई है, उसमे सबसे प्रथम पहलु है, सकारात्मक का अर्थ है कि ये सोचना कि उन परिस्थितियों में भी हमें अपरोक्ष (Indirect) रूप से भी कोई लाभ हुए है उनको जानना। भल परोक्ष लाभ कुछ भी न हुए हो तो उन लाभों को खोज निकाले क्योंकि आज हमारी मानसिकता इससे उल्टी है हमें जीवन में कई लाभ हुए होते है। परन्तु कुछ हानि भी हुई होती है, कुछ समस्यायें भी जीवन में आती है, कुछ अपनी कमियों भी है जीवन में तो व्यक्ति  उस हानि को ढूँढ़ता रहता है और वो हानि को खोजकर उसको रिपीट करता ही जाता है बार-बार, पर सकारात्मक का अर्थ है कि कितना न छोटा सा लाभ हो, वह छोटे से फायदे को भी आप ढून्ढ निकालिये और उस फायदे को जान बुझकरके, कोशिश करके भी रिपीट कीजिए, 10 बार, 20 बार, 50 से 100 बार रिपीट कीजिए यदि उस लाभ को ही हम रिपीट करते जायेंगे तो उस प्रकार के ही परिणाम होंगे। एक सबसे अधिक बिकने वाली किताब है ” Chicken Soup of Soul ” और आपको आश्चर्य भी होगा इसको कहते  है कि करीब 30 लाख प्रतियों है वो अब तक बिक्री हो चुकी है और ये एक Series of books है| वास्तव में इस किताब में लोगों की कहानियों है, लेखक ने लोगों की कहानियों इकट्ठी किया है कि जिनको जीवन में बहुत प्रॉब्लम आए, कोई व्यक्ति बहुत बुरी तरह से फेल हो गया, कईयों को कैन्सर की बीमारी हुई, हॉर्ट अटैक हुआ, छोटे-छोटे बच्चों को कैन्सर हुआ, अनेक बहुत बड़ी दुर्घटनायें हुई और किस प्रकार से उन्होंने स्थिरता (Stability) को बनाये रखा और उनका सामना किया।

इस विषय की ये कहानियों है जिसकी एक दो कहानियों को मैं आपको बताना चाहूँगा जो बहुत ही प्रेरणादायक है- एक महिला जिसको कैन्सर की बीमारी थी उसको 6 वर्ष तक कैन्सर रहा, उसका ईलाज भी चला, भल महिला पूरी स्वस्थ नहीं हुई थी। 6 साल के बाद उसने अपना अनुभव बताया था | इस किताब में जिसमें उसने लिखा था कि कैन्सर की बीमारी होने के बाद मुझे बहुत सारे फायदे हुए कि पहले मैं जीवन को ऐसे ही वेस्ट कर रही थी, जीवन का मूल्य या समय का मूल्य मैं नहीं जानती थी परन्तु जब से ये कैन्सर की बीमारी हुई, हर रोज महत्वपूर्ण है क्योंकि पता नहीं कल मैं जिन्दा रहूँगी या नहीं तो इसके कारण मैं हर दिन अच्छी से अच्छी तरह से बिताना चाहती हूँ, हर दिन से पूरा, जितना प्राप्त हो सके प्राप्त करने की कोशिश करती हूँ। दूसरा फायदा उसने बताया कि पहले तो मैं मानती थी कि मैं कमजोर हूँ, मेरे में कोई शक्ति नहीं है परन्तु इन सालों में मेरे कई ऑपरेशन हुए, कीमोथिरापी हुई या फिर विशेष प्रकार के इन्जेक्शन दिए गए, शक्तिशाली लाईट भी दिए गये परन्तु उन सबको मैनें सहन कर लिया। मेरे परिवार के सदस्य भी कहते हैं कि तुम तो बहुत शक्तिशाली नारी हो, बहुत हिम्मतवान (Bold) हो, तो इस यातना से मुझको पता चला कि मैं शक्तिशाली हूँ, लेकिन कमजोर नहीं। ऐसे ही हैनसेल जिन्होंनें तनाव के बारे में कार्य किया उनका भी एक ऐसा ही उदाहरण है, वे भी करीब 65 वर्ष के थे तो उन्हें आतों का कैन्सर हो गया और वो इतना खतरनाक था कि डाक्टरों ने कहा आप 6 महीने से ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे। तब उन्होंने सोचा कि सारे जीवन में मैंने इतनी रिसर्च किया है, सारा समय इसके ही पीछे मैंने लगाया है परन्तु अब जब 6 महीने ही जीवित रहना है तो क्यों न पूरा जीवन जो है वह अच्छी तरह से जिया जाए, हर घण्टे का, हर दिन का अच्छे से अच्छा फायदा मैं उठा लेना चाहता था और जब वो ऐसा करने लगे, Relaxation करने लगे, मेडीटेशन करने लगे, सकारात्मक विचार किया, प्रकृति के साथ रहने लगे ऐसे जब जीवन से उन्होंने अधिक से अधिक उस समय से प्राप्त करने की अपने प्रति कोशिश की तो 6 महीने बीत गए, 1 साल बीत गया, 2 साल बीत गया, 7 वर्ष बीत गया फिर भी वे स्वस्थ रहे इस प्रकार से ये सकारात्मक चिंतन है। अगला जो इसका पहलू है कि हो सकता है कि हानि हुई, वह कम भी नहीं हुई, जितनी होनी थी उतनी ही हानि हुई फिर भी आप सकारात्मक चिंतन कर सकते हैं अगर ये सोचें कि इससे कुछ सीखने को मिला। कई बार जैसे कि आप ये प्रशिक्षण ले रहे हैं। परन्तु इससे बहुत कम बात जीवन में अपनाते है जबकि आप उसे तुरन्त रिपीट करें, घर जा करके भी इस पर थोड़ा सा चिन्तन करें तो ही व्यक्ति कुछ जीवन में अपना पाता है, नहीं तो आमतौर पर लोग उन बातों को जीवन में नहीं अपनाते परन्तु कुछ होने के बाद जो सीखने को मिलता है, जीवन भर नहीं भूलते हैं, सदाकाल के लिए वह बात आपको याद रहती है। इसलिए भल जीवन में कुछ घटना होती है लेकिन फिर भी कितना आप अपनी सम्भाल (Precautions) करते हैं।

जो बहुत बड़े उद्योगपति (Industrialist ) हो गये हैं या तो बहुत मशहूर राजनीतिज्ञ हो गये हैं उन्होंने भी तो गल्तियों तो की परन्तु गल्ती से हमें कुछ सीखने को मिल जाए और उसे हम जीवन में अपना लें तो वो एक बहुत बड़ी बात है। तो इसलिए जब भी नकारात्मक घटनायें आपके सामने होती है परन्तु यह पहलू आपके जीवन में होना चाहिए कि यह जो भी हमें सीखने को मिला वह एक बहुत बड़ी प्राप्ति है। सकारात्मक चिंतन का जो और भी एक अच्छा पहलू है कि सदैव वर्तमान में जिये जिसकी हमनें चर्चा की थी, वर्तमान में जीना, वह भी सकारात्मक है। क्या किसी ने एक ही नदी में 2 बार हाथ धोये हैं? क्यों नहीं किया है? क्योंकि वह बहती रहती है। 1 सेकण्ड में दुबारा भी किया तो वह बहती रहती है, वह चेन्ज हो रहा है। इसी प्रकार से जीवन में भी ऐसा बनें कि पल-पल जैसी परिस्थिति आती, अपने आपको मोड़ लें | ये भी कहते हैं कि नदी जब पहाड़ों से निकलती तो क्या करती है, उसके सामने बहुत बड़ी चट्टान आती है तो वह उससे लड़ती नहीं परन्तु अपना रास्ता चेन्ज कर लेती है तो बहती हुई नदी के जैसा अपना जीवन बनें। कहते हैं कि आप वर्तमान में ही जी सकते हैं, आप भूतकाल या भविष्य काल में जी नहीं सकते, वह तो सिर्फ कल्पना हैं। या तो कहेंगे कि पागलपन का पहला कदम है कि भूतकाल या भविष्यकाल में जीना, क्यों? क्योंकि पागल व्यक्ति भी अवास्तविक बातें सोचता है, वह वास्तविक नहीं सोचता, तो ऐसे ही आप भी जो वास्तविक हैं उसके बारे में सोचते हैं? भविष्य में क्या होगा, आपको डर लगता है? चिन्ता होती है? पास्ट भी जो हो गया है उसका Post-mortem करके सोचते रहते हैं तो इसलिए सकारात्मक चिंतन माना ही कि सदैव वर्तमान में जियें। इसमें अगली Point है कि सकारात्मक चिंतन का अर्थ है कि अपनी तुलना औरों के साथ कदापि न करें क्योंकि आप इस विश्व में Unique व्यक्ति हैं, विशिष्ट व्यक्ति हैं। हम सभी जानते हैं कि हमारे अँगूठे का निशान इस दुनिया में विशेष है, साथ-साथ ये भी माना गया है कि हमारे सर का एक बाल भी इस दुनिया में Unique है। जिसके आधार से आपको पहचाना जा सकता है। तो जब हमारे में इतनी Uniqueness है, तो हर प्रकार से Mentally, Emotionally Intellectually, Socially हर रूप से हम विशेष हैं तो उन विशेषताओं को ढूंढ़ निकालें और उसके बारे में सोचना | सकारात्मक का यह भी अर्थ है कि आप अपने बच्चों की तुलना अपने बच्चे के पास्ट से करें- जैसे 3 साल पहले तुम्हारी इतनी अच्छी परसेन्टेज आई थी, अभी भी आ सकती है, तुम वही व्यक्ति हो, तुम्हारे में ही वह क्षमता है परन्तु औरों के साथ अपने बच्चे की तुलना कभी भी न कीजिए क्योंकि आपका बच्चा विशेष है। आपका बच्चा हर प्रकार से Unique है।

सकारात्मक चिंतन का अन्तिम पहलू है कि प्रॉब्लम के बारे में न सोचें, सदा निवारण (Solution) के बारें में सोचें। हम प्रॉब्लम के बारे में सोचते हैं, कि ये प्रॉब्लम हो गया, हॉय अभी क्या होगा? कैसे होगा? कैसे इसको मैनेज करेंगे? परन्तु विचार आए, तुरन्त कहो Stop! प्रॉब्लम के बारे में नहीं सोचना है, अभी निवारण क्या है। ये बात तो हो ही गईं परन्तु उसका समाधान क्या है। कई बार हम निवारण के बारे में तो सोचते हैं परन्तु ये हम सोचते हैं कि औरों को क्या करना चाहिए, औरों को अपने आपको ऐसे चेन्ज करना चाहिए, ये करना, ये सोचना कि मुझे क्या करना चाहिए क्योंकि वह मेरे कन्ट्रोल में है। एक छोटी सी भी बात मैं करूँ उससे यदि कुछ अच्छा निवारण निकल आए,यह ज्यादा उपयोगी है बजाय इसके कि दूसरों को क्या करना चाहिए?

6. सही विचारधारा (Right Thinking) – Introduction में भी बताया और सही विचारधारा के लिए ये समझा जाय तो गलत चिंतन को सही चिंतन में बदली करना भी सहज है क्युकी 10 रूप में हम Wrong Thinking करते हैं। इसको दूसरे सत्र में हम स्पष्ट करेंगे कि Right Thinking का वास्तविक अर्थ क्या है  कि प्राब्लम तो हमारे सामने है लेकिन उस प्रॉब्लम को उसी रूप (Magnitude) में देखें कि अगर प्रॉब्लम 20 प्रतिशत है तो उसको 20 प्रतिशत ही महत्व दीजिए, प्राब्लम को 90 प्रतिशत मत बनाइए और उसके क्या तरीके है, कैसे Right Thinking Practically करना चाहिए, यह हम देखेंगे |सत्र में “Right thinking in Action

 7. Elevated Thoughts, सकारात्मक चिंतन और Elevated विचार में फर्क है यहाँ तक की Self Esteem के विचार से भी ये भिन्न है, “जो विचार आध्यात्मिकता और योग से सम्बन्धित है, जो हमारी Consciousness को Higher Consciousness तक ले जाते हैं वो Elevated विचार हैं | ये विचार हमारी Consciousness को ऊँचा उठाते है जैसे कि मैं एक शक्तिशाली पवित्र आत्मा परमात्मा की संतान हूँ, जब स्वयं भगवान मेरे साथ है तो कोई भी मेरे खिलाफ नहीं हो सकता, मुझे विश्व में कोई महान कार्य करना है | जैसे जहरीले विचार में विषैले रसायन (Toxic Chemicals) निर्माण होते हैं जैसे कि एक है Blood Lactate कि जब हम टेन्शन में होते हैं, गुस्सा आता है, डर लगता है, ईर्ष्या होती है तब खून में Blood Lactate बढ़ जाती है और व्यक्ति थकान, Fatigue महसूस करता है और ऐसे भी प्रयोग किए गये हैं कि कोई व्यक्ति अभी बहुत ताजगी का अनुभव कर रहा है परन्तु उसमें Blood Lactate उसको I.V. दिए जायें तो भी वो Tired महसूस करने लगता है। उसको Irritation की Feeling होने लगती है। Elevated विचारों से Blood Lactate कम हो जाता है। यहाँ तक की नींद में भी Blood Lactate कम होते हैं परन्तु यदि नींद और मेडिटेशन या तो ऐसे Elevated विचार को हमेशा (Constant) रखें कि एक घण्टा एक व्यक्ति नींद करे और आप मेडिटेशन कीजिए या Elevated विचार करें तो ऐसा पाया गया है कि मेडिटेशन में बजाय नींद की तुलना में ,Blood Lactate लगभग तीन गुना ज्यादा कम होता है, और दूसरा यह कि अच्छे Chemical निर्माण होते हैं | आप सभी ने Morphine का नाम सुना है कि मारफिन का इन्जेक्शन देते हैं तो यह तो Synthetic pain killer है परन्तु शरीर स्वयं ही मारफिन जैसी चीज निर्माण करता है जिसको Endorphins कहते हैं जैसे यह तो शरीर में Natural Pain Killer है, तो ये Elevated विचार और मेडिटेशन में Endorphins भी Release होते हैं। भल वो बहुत कम मात्रा में Release होते हैं परन्तु वह 50 गुना ज्यादा पॉवरफुल हैं। मारफिन से दर्द को कम करने में जो इसके Harmful Effects भी हैं, नहीं रहते हैं। तो सारा दिन हम Elevated विचार करें तो Elevated विचार का प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है।

8. और अन्तिम तरह का विचार  है जिसको कहा गया है Zero Thought, Zero विचार – सरल तरीके से जय-पराजय या तो मान-हानि आदि की जो भिन्न परिस्थितियों जो हमारे सामने आती हैं, उन सभी अवस्थाओं में सन्तुलन रखना वो है वास्तव में Zero विचार|कोई प्रसंशा करे तो हम बहुत खुश न हो जायें और कोई आलोचना करे तो हम निराश न हो जायें। ये तभी सम्भव है कि आप प्रशंसा में बहुत ऊपर नहीं चले जायेंगे। अगर प्रशंसा में ऊपर गये तो आलोचना से नीचे भी जरूर आयेंगे। क्योंकि अगर वह व्यक्ति मुझे अच्छा लगता है, जो हाँ-हाँ करता है तो यदि दूसरा टीका करता है वह मुझे बुरा भी लगेगा किं ये प्रश्न क्यों पूछता है लेकिन यदि मैं हॉ-हॉ से प्रभावित नहीं होता तो प्रश्नों से प्रभावित नहीं होऊँगा। इसलिए जितना हो सके इस प्रकार की स्टेज को भी हमें बनाने की कोशिश करनी चाहिए कि जिसमें कम से कम विचार होंगे, वास्तव में जितने कम विचार होंगे उतना ही आपकी शक्ति की बचत होगी। इसके लिए हमें विचारों की उत्पत्ति को समझना चाहिए। वास्तव में जो कहा कि सारे दिन में 30 हजार विचारों का निर्माण होता है वो कैसे होते है? इतने अधिक क्यों होते हैं क्योंकि एक के बाद दूसरे विचारों का लिंक होता है। जैसे मैंने एक वीडियो देखा यदि मैं सोचता हूँ कि ये अच्छा है तो अभी और भी विचार चलेगा कि मेरे पास भी टीवी जेसा साधन हो तो अच्छा है| अगर किसी के पास इतने पैसे नहीं है कि अपनी एक मनपसंद चीज़ खरीद सके, फिर उसके लिए कोई न कोई तरीके से धन कमाने की भी कोशिश करेंगे| तो एक बात अच्छी लगने से जो विचारों की श्रृंखला है (Chain of Thoughts) है, वह साथ-साथ चली इसलिए सबसे अच्छा तो यह है कि जहाँ तक भी सम्भव हो, रोज यदि हम इस स्टेज को बढ़ाते जाये कि मैं प्रतिक्रिया (React) न करूँ कि जो चीज जैसी है वैसे ही मैं स्वीकार करूँ और मुझे चीजों का आनन्द लेने दें, बजाए इसके कि मैं प्रतिक्रिया करूँ। वो दोनों ही बातें न हो और मैं उस प्रकार से अगर सारा दिन व्यतीत करुँ, थोड़ा भी यदि समझो 15 प्रतिशत ऐसा हो गया, मैं मानता हूँ कि कुछ बातों में तो आपको प्रतिक्रिया करनी ही पड़ेगी। यहाँ तो आपको सोचना ही पड़ेगा ये अच्छा है या नहीं, इसका दाम ठीक है या नहीं लेकिन जिन परिस्थितियों में आवश्यकता नहीं है उसमें भी यदि हम Zero Thinking करें तो हमारी शक्ति बहुत मात्रा में बचेगी और वह जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी होगी।

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