सर्वांगीण स्वास्थ्य का आधार है आध्यात्मिक स्वास्थ्यस्वास्थ्य ही हमारी सच्ची सम्पत्ति है। स्वास्थ्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और सच्चा खजाना है लेकिन आज हम देख रहे हैं कि सारा विश्व एक बहुत बड़ी हॉस्पिटल बन चुका है। प्रत्येक इंसान मरी॰ज बन चुका है। क्योंकि हम सर्वांगीण स्वास्थ्य की परिभाषा को देखें तो डब्ल्यू. एच.ओ. के मत के अनुसार
सर्वांगीण स्वास्थ्य माना शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रीति से स्वास्थ्य होना है। सिर्फ शरीर में बीमारी न होना, उसको ही स्वस्थ नहीं कहा जाता है। आज प्रत्येक इंसान काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, वैरभाव, घृणा, नफरत, तिरस्कार की भावना, चिंता, भय आदि अनेक बीमारियों से पीड़ित है जिसके कारण 80 प्रतिशत से भी अधिक मनोदैहिक बीमारियां हुई हैं।
यदि सर्वांगीण स्वास्थ्य की एक बीमारी के साथ तुलना करें तो पिरामिड का आधार है आध्यात्मिक स्वास्थ्य और पिरामिड का आकार भी तीन दिखाते हैं। मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य। इसका मतलब अगर इंसान आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ बनेगा तब ही सर्वांगीण स्वास्थ्य प्राप्त होगा। अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य किसे कहेंगे? आध्यात्मिक स्वास्थ्य की निशानियां और विशेषतायें क्या है?
निम्नलिखित 7 बातें हमें आध्यात्मिक स्वास्थ्य के बारे में दर्शाती हैं-
- आध्यात्मिक व्यक्ति अपने आपको एक अजर-अमर-अविनाशी आत्मा निश्चय करता है और आत्म-अभिमानी होकर रहता है। आत्म-अभिमानी होकर रहने के कारण आत्मा के जो असली गुण हैं, ज्ञानस्वरूप, आनंदस्वरूप, सुखस्वरूप आदि गुणों में स्थित रहने के कारण वह स्वरूप रहता है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का मन शांत और शुद्ध, सकारात्मक, शक्तिशाली और स्वस्थ रहता है। जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों के बीच में भी वह स्वस्थ रहता है और प्रत्येक स्थिति में हमेशा खुश रहता है। और हम जानते हैं कि खुशी जैसी कोई खुराक नहीं, खुशी जैसी कोई दवा नहीं और खुशी जैसा खजाना नहीं। स्वस्थ जीवन के लिए शान्ति और खुशी बहुत ही आवश्यक है। आध्यात्मिक व्यक्ति हमेशा सकारात्मक चिंतन ही करता है और सकारात्मक चिंतन सर्वांगीण स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। जीवन में पवित्रता, शान्ति, खुशी, ईश्वरीय प्रेम अनुभव करने के कारण ही व्यक्ति मानसिक तनाव से दूर रहता है और मनोदैहिक बीमारियों से तथा दुर्व्यसनों से दूर रहता है।
- आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ मानव का परमपिता परमात्मा तथा सारे विश्व की आत्माओं के प्रति आत्मा-आत्मा भाई की भावना होने के कारण उसके मन में विश्व बंधुत्व की भावना बनी रहती है जिससे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रहता है। उसका ह्दय निःस्वार्थ, दिव्य प्यार से भरपूर होने के कारण वह आत्माओं को सच्चा प्यार, सहयोग, शान्ति और दुआयें देकर सर्व को संतुष्ट करता है। यह गुण सामाजिक स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।
- आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ इंसान काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, भय, चिंता से मुक्त होने के कारण मन से स्वस्थ रहता है। ये विकार ही सारे विश्व की अनेक समस्याओं तथा अनेक बीमारियांं का कारण हैं। मानसिक स्वस्थता ही शारीरिक स्वस्थता का आधार है। क्रोध के कारण इंसान का रक्तचाप बढ़ जाता है जिससे ह्दय रोग भी बढ़ने लगता है। क्रोध के कारण हमारी रोग प्रतिकारक शक्ति कम होने लगती है जिससे मॉंसपेशियॉं सिकुड़ने के कारण दर्द होता है। यह सभी विकार जहर के समान हैं जो हमारे शारीरिक-मानसिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य को बिगाड़ते हैं।
- आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ इंसान के जीवन में नम्रता, निर्भयता, मधुरता, धैर्य, हर्षितमुखता, सहनशीलता, आत्मविश्वास, सरलता, संतुष्टता आदि गुण होते हैं और ये सभी गुण सर्वांगीण स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक हैं। कहा जाता है- मीठे बोल दवा से भी सर्वोत्तम हैं जिनके द्वारा मानवीय संबन्धों में सुधार आता है जिससे सामाजिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
- आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ इंसान अपने जीवन में सहनशक्ति, समाने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, परखने की शक्ति, निर्णय शक्ति, सहयोग की शक्ति आदि अनेक आत्मिक शक्तियों का विकास करता है जिसके कारण कैसी भी विपरीत परिस्थितियों के बीच में भी बहुत ही स्वस्थ और शक्तिशाली रहता है। उसका मनोबल बहुत मजबूत रहता है। कहा जाता है कि सहनशक्ति ही स्वस्थ रहने का आधार है।
- आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ व्यक्ति व्यसनों से मुक्त रहता है जिसके कारण व्यसनों से होने वाली अनेक बीमारियों से भी बच जाता है।
- आध्यात्मिक रीति से स्वस्थ इंसान जीवन में हमेशा श्रेष्ठ कर्म ही करता है। बीमारियों का एक कारण पूर्व में किये हुए कर्म हैं। आध्यात्मिक व्यक्ति विकर्मां से मुक्त होने के कारण भी अनेक बीमारियों से बच जाता है।