तनाव का पूर्ण प्रबन्धन (Total Management of Stress)

 परिस्थितियों में सामना करने के लिए स्वयं की शक्ति

ये दो Factors है Stress Management के, या तो परिस्थिति को कम करें या तो स्वयं को शक्तिशाली बनायें, कौन सा तरीका अच्छा है, परिस्थिति को हम हल्का जरूर कर सकते हैं और साथ ही साथ में शक्ति जरूर भरें, अब Situation को कैसे हल्का करें? इसमें पहला तरीका है अपने सोच-विचार में खुद परिवर्तन करना, अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना(Attitudinal Transformation)| Habit क्या होती है? जो चीज हम बार-बार करते हैं, वह हमारी आदत (Habit) बन जाती है इसलिए अरस्तू ने कहा कि अच्छा करना कोई क्रिया नहीं है, यह तो एक आदत है। आप भी कोई कार्य बार-बार करो तो उसमें भी बहुत अच्छे Expert बन जायेंगे। एक बहुत अच्छी Quotation है कि जो भी चीज हम दुनिया में लाना चाहते हैं वो तब ला सकते हैं जब हम Tradition से अलग हटकर सोचते हैं, यदि हम परिपाटी (ट्रेडिशन) अनुसार ही सोचते हैं, वैसा ही करते हैं तो हम वहीं के वहीं रह जायेंगे। Manager के Manager ही रह जायेंगे लेकिन यदि हमको ऊपर जाना है, कोई नई चीज लानी है तो हमको ट्रेडिशन के ऊपर सोचना चाहिए, ये अल्बर्ट आइन्सटीन ने भी कहा कि ” कोई भी समस्या को हम उसी लेवल पर समाधान नहीं कर सकते, जिस पर समस्या बनाई गई थी ” अगर उसी लेवल पर मैं उसको ठीक करूँ तो वो ठीक नहीं होगा, मुझे उसके ऊपर उठना होगा, तब जाकर प्रॉब्लम ठीक होगा, मैजारिटी हम क्या करते हैं कोई भी चीज का Solution कैसे करते हैं? हम अपना देखें कि पहले ऐसे किया था, अब भी वैसे करते रहते हैं, इसके बाद आता है कि Habit (आदत) क्या है? यह तीन चीजों से बना है, पहला है ज्ञान | ज्ञान का अर्थ होता है मुझे क्या करना है? क्यों करना है? Why and What, ज्ञान ये सिखलाता है, दूसरा है, इच्छा शक्ति यानि कि मुझे करना ही है | और तीसरा है Skill, कार्य कुशलता, जिसको की अभी आप सभी सीख रहे हैं कि कैसे करना है | How, कोई भी Habit या Attitude इन तीनों चीजों से बनता है-ज्ञान,इच्छा शक्ति और कुशलता और हमको तीनों ही यूज करना है | जैसे जो आज का विषय है कि हमें नये Attitude बनानें है, तो उसके लिए हमें तीनों पर ही कार्य करना पड़ेगा | ज्ञान भी सीखना है यानि Information भी लेनी पड़ेगी और इक्छा शक्ति, और Skills । अब तीनों को हमें जोड़ते जाना है तो हम नई आदत को बनाते जायेंगे| अब हम Paradigm की बात करते हैं जो कि मैनेजमेण्ट में बहुत ही चर्चित रहता है, और वास्तव में एक प्रकार का अपने मानस पटल पर नक्शा या मॉडल बनाना है कि हम संसार को कैसा देखते हैं, कैसा समझते हैं। यह इन दो चीजों पर आधारित होता है एक है Subjective Reality जो चीज हम देखते हैं आँखो से, कानों से सुनते हैं, जो हमारे पास Information है उसके अनुसार हम एक्ट करते हैं। सूचना आई, मैंने देखी-सुनी माना Reality | ये कैसी बाते हैं? हमारे जीवन में बचपन से कुछ हमारे माता-पिता ने कहा, टीचर्स ने कहा, यहाँ नहीं जाना, इस टाइम मत खाना, ये मत खाना, तो ये सब बातें हमारे अन्दर बढ़ती गई, हमनें भी जो चीजें की, उसमें कुछ फेल हुए, कुछ अनुभव हुए, वो सब हमारे अन्दर आती गई, इसको कहते हैं Conditioning | मान लो मम्मी ने कहा, कि अरे तू लड़की है पेड़ पर मत चढ़ना, तो हमारे अन्दर Conditioning हो गई कि सिर्फ लड़के लोग ही चढ़ते हैं। मैं नहीं चढ़ सकती तो क्या होगा, मैं अपनी पर्सनॉलिटी वैसे ही बना दूंगी कि हाँ ऐसा नहीं करना चाहिए, तो ये हमारे अन्दर बचपन से लेकर अब तक धीरे-धीरे Conditioning कर दी जाती है। इसे और स्पष्ट करने के लिए एक एक्सपेरिमेंट के बारे में आपको बताते हैं – एक मेडिकल साइंटिस्ट ने एक बहुत ही अच्छा Experiment किया था जिसको पावलोव का प्रयोग कहा गया, एक रशियन साइंटिस्ट था उसने प्रयोग में क्या किया, एक घण्टी ली और उसके पास एक कुत्ता था, कुत्ते को खाना खिलाने से पूर्व वह घण्टी जरूर बजाता था, पुनः खाना खिलाता था। ऐसा करता गया, घण्टी बजाई और खाना दिया। 3-4 महीनें के बाद, उसने केवल घण्टी बजाई और खाना नहीं दिया तो भी उसके जीभ से लार (Saliva) बहने लगा। इसको Physiology में कहते हैं Conditioning Reflex, खाना बिना दिए भी लार बनना शुरू हो गया। इसी तरह से हमारे माइन्ड में जो भी हमारा Subconscious Mind , Conscious Mind जो भी चीज भेजता है, Subconscious Mind उसको ले लेता है। Conscious Mind उसको फिल्टर कर लेता है, पर एक बार जो चीज फिल्टर हो गई वो Subconscious mind में जमा होती जाती है, वैसी की वैसी चीजें जमा होती जाती है। Subconscious ये Differentiate नहीं करता कि ये घटना है, ये सत्य है या काल्पनिक है, इसलिए स्ट्रेस कभी-कभी काल्पनिक (Unreal) चीजों से भी आता है, जेसे किसी के जीवन में पस्त में कुछ घटित हुआ हो, पर वो व्यक्ति पास्ट की बातों को याद करके आत्मग्लानि में चला गया, तो उसको उसी समय पुनःस्ट्रेस होना शुरू हो जायेगा| जेसे किसी को बचपन की कोई घटना याद आ गई, एक उदाहरण है- एक लड़की थी जिसे फूलों से Allergy थी। वह जैसे ही फूल देखती थी, तो उसकी आँख से, नाक से पानी बहना शुरू हो जाता था। काफी इलाज किया, डाक्टर ने कहा Allergy है तब उसका Analysis किया गया, पता चला कि जब यह 4 वर्ष की थी, उसकी माँ रसोई में काम कर रही थी तो अचानक किसी ने घण्टी बजाई, दरवाना खोला और कोई बुके (गुलदस्ता) लाया था गुलाब के फूलों का, मों के लिए, उसकी माँ ने वह बुके लेकर पियानों के ऊपर रख दिए, और वापस जाकर रसोई में काम करने लगी, फिर ये लड़की धीरे-धीरे उत्सुकता से फूल देखने के लिए पियानों के करीब पहुंची और स्टूल पर चढ़कर फूल से खेलने लगी। फूल गिर गए और Crush हो गए तो पानी फैल गया तो मम्मी रसोई से आई और डॉटते हुए उसकी पिटाई कर दी, ये बच्ची रोने लगी, उसकी मॉ ने फूलों को ठीक करके फिर से रख दिया और फिर उसको कहा कि आगे से वो ये गलती रिपीट नही करे, वो चुप हो गई, अब जैसे ही वो फूल देखती है उसको बचपन की वही घटना याद आ जाती है,कि फूल का मतलब रोना, क्योंकि असुरक्षा की भावना आ गयी| उसे लगा कि उसकी माँ उसे कभी प्यार नही करेगी,डाट लगा देगी,ऐसी असुरक्षित अवस्था में सुरक्षा पाने कि इच्छा से, सुरक्षा पाने के लिए रोना क्योंकि फिर माँ ने चुप कराया तो जिन्दगी में उसका Response क्या हो गया रोना, ऑसू आना, अपने को असुरक्षित फील करना, और फिर धीरे-धीरे ठीक होना, अब ये उसका Natural Response बन गया | फिर उसको Conditioning कहते हैं कि जिस माहौल में हम रहते हैं, जहाँ हम बढ़ते हैं, तो वो हमारी Conditioning जीवन में होती जाती है, तो इसको कहते हैं Subjective Reality| दूसरी प्रकार है Objective Reality इसमें जो चीज़ है, जैसी है, वैसी ही उनको समझना, उसको कहते हैं Objective Reality माना वस्तु निष्ठ दृष्टिकोण  Subjective में था व्यक्ति निष्ठ दृष्टिकोण, यहाँ हम माना कि वस्तु निष्ठ वास्तविकता को देख रहे हैं और जो चीज जैसी रहती है, वो Principle और Values जो है लाईफ की वो सच है। जैसे कि प्लेटो ने कहा Truth is eternal कि सत्य अविनाशी होता है, क्योंकि जो Subjective Reality है वो जीवन में चेन्ज हो जाती है, इसको हम बाद में बदल सकते हैं। परन्तु Objective Reality में नॉलेज है चीजों की, जैसी वो है। कहा भी गया है कि Habit सीखी भी जा सकती है और उसको हम भुला भी सकते हैं | ट्रेन जा रही है, रविवार का दिन है, लेखक बैठा हुआ है, अचानक एक स्टेशन पर एक आदमी अपने बच्चों के साथ प्रवेश करता है, 4-5 बच्चे थे, खूब शोर मचा रहे हैं, सब लोग देख रहे हैं, कि कितने उधमी बच्चे हैं, सबको तंग कर रहे हैं, ये लेखक सोच रहा है कि ये कैसे आदमी हैं, बस खिड़की के बाहर ही देख रहा है और बच्चों को कुछ भी नहीं कह रहा है, तो आखिर में उनके फादर के पास जाकर बोला कि आप इन बच्चों को सम्भालते क्यों नहीं, कुछ कहते क्यों नहीं, वो फादर बोलता है, कि मैं तो अपने को ही अभी नहीं सम्भाल पा रहा हूँ, अभी-अभी मैं अस्पताल से आया हूँ , इनकी मदर की मृत्यु हो गई है, और इन बच्चों को घर छोड़कर मुझे दाह संस्कार करने जाना है | जैसे ही उसने ये बोला तो सबके Attitude में चेन्ज आ गया, कोई चाकलेट देने लग गया, कोई प्यार करने लग गए, सोचा अब तंग कर रहे हैं तो कोई बात नहीं, तो आपने देखा की एक Reality क्या थी और Objective Reality क्या थी, जो देख रहे थे वो नहीं था, जो चीज थी वो उससे अलग थी, तो इससे पता चलता है कि कैसे हमारे Attitudes में  Subjective Reality जो है वो change हो जाती है | इसीलिए कहा जाता है कि हमें परिवर्तन होना चाहिए | धीरे-धीरे जैसी Situation आती है, अपने आपको Flexible बनाकर परिवर्तन होना चाहिए और नहीं होते हैं तो कभी-कभी Wash Out हो जाते हैं। पुराने तरीकों को ही पकड़कर रखते हैं तो वो ठीक नहीं है | जैसे माँ क्या करती है? दो बच्चे हैं तो जैसे पहले को खिलाया नहलाया, बड़ा किया तो ये सोचेगी? कि जैसे पहले को बड़ा किया, वैसे ही दूसरे को करूं | अब यह जरूरी नहीं कि पहला जो तरीका है वो अभी भी काम आए, क्योंकि उसकी पर्सनालिटी अलग है। तो ये चीजे हम अपने Attitude में बदल सकते हैं और चेन्ज बहुत आवश्यक है।

आज की दुनिया में Negative और Positive दोनों ही Attitude वाले लोग रहते हैं, अब निगेटिव वाले लोग कैसे होते हैं,उनकी कुछ निशानियाँ हैं..

1.जब सब नार्मल होता है तो ये खुश नहीं रहते। कुछ समस्या होती है, तब ही उनको मजा आता है।

2.खराब चीज में तो Comfortable रहते हैं पर कोई चीज अच्छी लगती है तो वे बेचैन हो जाते हैं।

  • हमेशा शिकायत खिड़की पर खड़े रहते हैं जैसे रेलवे के काउण्टर होते हैं, उन लाइनों में काउण्टर पकड़कर खड़े रहते हैं, जरा सी कुछ बात हुई और शिकायतें शुरू कर दी।
  • अंधेरे को महसूस करने के लिए रोशनी महसूस करते हैं।

5.हमेशा जीवन के आइने में कमियों को देखते रहते हैं।

6. पलंग पर सोना बंद कर देते हैं जैसे ही उनको पता चलता है कि ज्यादातर लोग तब मरते हैं जब वो बिस्तर पर सोये रहते हैं।

7. हमेशा कठिनाइयों को गिनते रहते हैं, छोटी चीज को बड़ा कैसे करें, इसमें वो मास्टर होते हैं, इसमें उनकी Ph.D. रहती है।

8. वो जीवन में आये हुए अवसरों को भी नहीं लेंगे। हमेशा ही लौटा देंगे।

9. वो अपनी स्थिति में ही संतुष्ट रहते हैं, उनको लगता है कि आगे जायेंगे तो समस्या आयेंगी |

 वो अपने ही Comfortable Zone में रहते हैं,  हमेशा अपने जोन में ही खड़े रहते हैं, उसी में रहना पसन्द करते हैं, थोड़ा सा भी जोन से बाहर आए, समस्या आई तो तुरन्त वापस अपने जोन में दिखाई देंगे कि  “नहीं, वही बात ठीक है ” | इसका एक उदाहरण है- मिस्टर फल्टन- जिन्होंने स्टीम बोट बनाई थी, न्यूयार्क में जब यह स्टीम बोट बनी, उसने लोगों को दिखाने के लिए बुलाया कि आज हम स्टीम बोट चलायेंगे। निगेटिव और पॉजिटिव दोनों ही प्रकार के लोग आ गए। निगेटिव लोग तो कहते कि ” अरे यह तो चलेगी नहीं “, लेकिन   स्टीम बोट तो चल पड़ी तब निगेटिव लोगों ने कहा गल्ती से चल गई, अब ये बोट रुकेगी नहीं| तो आपने देखा कि निगेटिव लोग क्या-क्या करते हैं कि वो हर चीज में निगेटिव को देखना ही चाहते हैं और दूसरा ये बताया कि वो एक Comfortable Zone में अपने को रखते हैं और जैसे ही उस Comfortable Level से थोड़ा भी बाहर किसी ने किया तो Uncomfortable हो जाते हैं। जैसे एक उदाहरण से हम स्पष्ट करेंगे- चार्ल्स डिकिन्स ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि एक कैदी था, जब वो अपनी सजा काटकर आजाद हुआ, जैसे ही बाहर आया, उसने रोशनी देखी, आज़ादी देखी, तो उसने कहा कि मैं तो वापस जेल में जाऊँगा क्योंकि वो जंजीरों में, कैद में, अंधेरे में Comfortable था, वो अपने को सुरक्षित महसूस करता था, बाहर उसको डर लगता था, इतनी लाइट है, इतनी बड़ी दुनिया है, यहाँ मैं सेफ नहीं हूँ, वह वापस जेल चला गया कि मैं तो यहीं रहूँगा। तो इसको कहते हैं कि मैजारिटी लोग Comfortable Zone में ही रहना चाहते हैं तो वो लोग लीडर नहीं बनते है, लीडर कौन बनता है, जब हम Comfortable Level को पार करके चैलेन्ज को लेना चहते हैं। नहीं तो अपने रूटीन में हम सालों साल तक वैसा का वैसा ही रहना चाहते हैं क्योंकि वो सुरक्षित फील करते हैं और जैसे ही थोड़ा इधर उधर उन्हें करते हैं तो डर चालू हो जाता है | यदि हमको लीडर बनना है तो Comfortable की कैद को और अंधेरों को छोड़कर बाहर निकलना पड़ेगा, तो अब हमें क्या बनना है, अब पॉजिटिव कैसे बनना है तो रोज जीवन में पॉजिटिव बीजों को देखने का नजरिया बनाओ, दूसरों की भी Positivity को ढूंढ़ निकालो | कुछ निगेटिव लोग हैं, Criticise करते हैं, मान लो प्रमोशन हुआ या आपने कार खरीदा तो ये लोग दरवाजे के बाहर ही खड़े रहते हैं और कहते हैं कि  “अब तो बड़ा आदमी बन गया “|  इसको भी आप पॉजिटिव लीजिए कि ये तो मुफ्त के Psychiatrist हैं, आपका पूरा विश्लेषण करके आपको बता रहे हैं, हमें क्या करना चाहिए, उसको सुनकर फिर से अपना विश्लेषण करके वो गल्तियाँ निकाल देना चाहिए, जिससे हम आगे बढ़ते जायेंगे, और वो उसी शिकायत खिड़की पर लाइन में लगा रहेगा, अब हम आगे जाकर लीडर बन जायेंगे, तो कभी भी कोई आपकी आलोचना करे( भारत में जो स्ट्रेस का एक बहुत ही बड़ा कारण है) तो घबराओ मत वो हमारा दोस्त है, उसकी सुनो और धन्यवाद करके आगे बढ़ते चलो।

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